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सिंघार ने कहा कि उन्होंने 19 अगस्त को हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में वोट चोरी के कई प्रमाण प्रस्तुत किए थे, लेकिन अब तक न एमपी चुनाव आयोग और न ही भारत निर्वाचन आयोग ने कोई जवाब दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी ने चुनाव आयोग के एजेंट के रूप में जवाब दिया था।सिंघार ने कहा, “दो महीने में 16 लाख वोट बढ़े थे, और 9 जून 2025 को आयोग ने पत्र जारी कर कहा कि अंतिम सूची के बाद जो नाम जोड़े जाएंगे, उनकी जानकारी न तो किसी वेबसाइट पर डाली जाएगी, न किसी को दी जाएगी।” उन्होंने कहा कि एमपी के अलावा कई अन्य राज्यों में भी आयोग ने इस तरह के आदेश जारी किए हैं। “जब आयोग ही गड़बड़ी कर रहा है, तो हम SIR पर कैसे विश्वास करें?”
नेता प्रतिपक्ष ने चुनाव आयोग के ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) को ‘सेलेक्टिव इंटेंसिव रिमूवल’ करार दिया। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया सिर्फ 12 राज्यों (जिनमें एमपी शामिल) में चल रही है, जबकि असम में NRC बहाने से छूट दिया गया। बिहार में 60 लाख नाम काटे गए, जिनमें ज्यादातर बाहर काम करने वाले मजदूर थे। एमपी में भी वन पट्टे के आधार पर नाम जोड़ने की बात कही जा रही, लेकिन बीजेपी सरकार ने कई पट्टे निरस्त कर दिए हैं। आदिवासी दूरदराज क्षेत्रों में रहते हैं, जहां इंटरनेट या दस्तावेजों की समझ नहीं। अल्पसंख्यक और OBC भी बाहर मजदूरी के लिए जाते हैं, उनके नाम कटने का खतरा है। सिंघार ने सवाल उठाया, “4 नवंबर से 4 दिसंबर तक पूरे देश के वोटरों की गणना कैसे संभव? अंतिम सूची में जोड़े नाम न पोर्टल पर डालें, न दें- यह EC का आदेश है, फिर विश्वास कैसे करें?”
सिंघार ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा आदिवासी मतदाताओं के वोट काटने की तैयारी कर रही है। “आदिवासियों के पास न इंटरनेट है, न कंप्यूटर। तीन लाख आदिवासियों के वनाधिकार पट्टे खारिज कर दिए गए, यानी 12 से 18 लाख वोट काटने की तैयारी पहले ही कर ली गई”। सिंघार ने चेतावनी दी कि यह साजिश दलित, अल्पसंख्यक और ओबीसी समुदायों तक भी पहुंचेगी। “ये लोग भी रोजगार के लिए बाहर जाते हैं, और जब बीएलओ (बूथ लेवल अधिकारी) उन्हें घर पर नहीं पाएंगे, तो उनके नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए जाएंगे”।
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