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बीजेपी नेता और अपने तीखे अंदाज में कविता कहने वाले पूर्व विधायक कवि सत्यनारायण का गुस्सा फिर फूट पड़ा है। उन्होंने कांग्रेस के साथ भाजपा की भी खिंचाई कर दी है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा है कि 'आंध्र और कर्नाटक में BJP घुस गई फाटक में, अब फाटक में घुसी हुई BJP का क्या दृश्य होगा यह देखना है।'सत्तन बुधवार रात को विधायक ट्रॉफी क्रिकेट कॉम्पिटिशन में पहुंचे थे। वहां उन्होंने यह बयान दिया। उन्होंने कहा कि पुरानों का विश्राम लेना संसार का नियम है। जो फलेगा वह झड़ेगा और जो जलेगा वो बुझेगा। जो वरिष्ठ है, वो वरिष्ठ है। अगर नौजवान पीढ़ी अपने समर्थ हाथों में कमान संभालती है और सम्मान से आगे ले जाती है तो वंदनीय है। यदि ऐसा नहीं कर पाती तो निंदनीय।सत्तन ने कहा कि शिवराज सिंह चौहान ने मुझे बुलाया है। वे पार्टी के मुखिया हैं, वे आदणीय हैं। हम उनके आदरणीय हैं। ऐसा खुद उन्होंने कहा है कि आप हमारे आदरणीय हैं। उन्होंने बुलाया है लेकिन आज अन्य जगह जाने से शुक्रवार को भोपाल जाऊंगा।एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि आत्म विश्लेषण करना बहुत जरूरी है। मुख्यमंत्री को अपने कार्यकर्ताओं के साथ व्यवहार करने का अधिकार है और उन्हें उनकी स्थिति, कुशलक्षेम पूछने का भी अधिकार है। उनके प्रश्न का उत्तर देने भोपाल जाऊंगा।वे ये भी बोले कि आप लोगों (पार्टी) ने जिस तरह का व्यवहार करके लोगों को सम्मानित करने के बाद बजाय अपमानित करने का काम किया, वह गलत है। वे तुम्हारे सीनियर थे जिन्होंने इससे ‘उत्कृष्ट जागृत प्राप्त वरान्य’ की परिभाषा को सार्थक करते हुए आगे बढ़ाया। उनकी रक्षा करना इनका धर्म है बजाय की उसे दूषित करने के। लेकिन ऐउन्होंने कहा कि ऐसे में इस पीड़ा को अभिव्यक्त करने का माध्यम शब्द ही हैं और उस शब्द के माध्यम से अभिव्यक्ति होती है। शब्द यदि सत्य है तो सत्य तो सत्य ही है। उसे शुगर कोटेड पॉयजन बनाकर क्यों बोलो? मैं सत्य को सत्य ही रखना चाहता हूं। सत्य अपने आप में सत्य है और वह उन्हीं लोगों को प्रिय होगा जो सत्य की आराधना करते हैं। सत्तन ने कहा कि पीढ़ियां आती हैं, पत्ते झरते हैं और नए लग जाते हैं। बसंत इस बात की घोषणा करता है। शाख पात का, पात शाख का, शाख वृक्ष वरदान… गीत छंद में.. छंद गीत में… लय में अंतर्ध्यान… तो उसका वरदान है… यही पीढ़ियों का धर्म है। उस धर्म का निर्वाह करते-करते हम थक जाएं तो आने वाली पीढ़ी उसे संपूर्णता की ओर ले जाए यही संदेश है। सा नहीं हो पा रहा है, इसलिए मन क्षुब्ध है। हम नींव के गढ़े हुए पत्थर उसको अभी तक सहन कर रहे हैं, जिसको सुसंस्कृत करने के लिए हम प्रयत्नशील थे।
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