कलियासोत डैम के किनारे एक घड़ियाल करीब छह दिन से मरा पड़ा था। स्थानीय लोगों की सूचना के बाद भी भोपाल वन मंडल के अमले को घड़ियाल नहीं मिला। सोमवार को घड़ियाल मिला, तो वन विहार प्रबंधन ने यह कह कर शव लेने से इनकार कर दिया कि वह वन विहार का जलीय जीव नहीं है। उसे वेटनरी अस्पताल ले जाओ। वाइल्ड लाइफ मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव में शव को वन विहार में एंट्री तो मिली, लेकिन पोस्टमार्टम मंगलवार को ही हो पाया।
स्थानीय लोगों के मुताबिक प्रतिबंध के बावजूद यहां मछुआरे मछली पकड़ रहे हैं। इसी दौरान एक घड़ियाल उनके जाल में फंस गया। घड़ियाल को जाल से निकालने के दौरान उसे पीटकर मार दिया गया। जब मछुआरे उसे जाल से निकाल पाए तो घड़ियाल को जाल सहित वहीं छोड़ दिया गया। वन विभाग घड़ियाल की मौत का कारण गेट खुलने पर पानी के दबाव को बता रहे है ।
दूसरी ओर चिरायु अस्पताल के सामने तालाब के किनारे एक सात फीट लंबा मगरमच्छ का बच्चा मरा मिला। इसकी मौत भी कम से कम छह दिन पहले हुई थी। इसका मुंह कुचला हुआ था। दोनों जलीय जीव का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर का कहना है कि दोनों की स्किन इतनी गल चुकी थी कि बताना मुश्किल है मौत कैसे हुई है। घडियाल और मगरमच्छ की मौत बताती है कि वन विभाग और वन विहार नेशनल पार्क वन्य प्राणियों को लेकर कितना संवेदनशील है।
शार्ट पीएम रिपोर्ट के अनुसार घड़ियाल की मौत कम से कम छह दिन पहले हुई है। वहीं चिरायु अस्पताल के सामने तालाब के किनारे मृत मिले मगरमच्छ की मौत भी छह दिन पहले हुई थी। दोनों जलीय जीव का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर का कहना है कि दोनों की स्किन इतनी गल चुकी थी बताना मुश्किल है कि मौत की वजह क्या है।
घड़ियाल और मगरमच्छ के शव लेकर पहुंचे भोपाल वन मंडल के अमले को वन विहार में अंदर नहीं जाने दिया गया। वन विहार के डायरेक्टर अतुल श्रीवास्तव का कहना था कि बाहर से लाए गए जानवरों का पोस्टमार्टम वन विहार में नहीं बल्कि वेटनरी अस्पताल में होना चाहिए, जबकि भोपाल वन मंडल के कर्मचारियों का कहना था कि मरे हुए वन्यप्राणियों को पोस्टमार्टम के लिए वन विहार भेजा जाता है। इस मसले को सुलझाने के लिए एपीसीसीएफ आरपी सिंह को हस्तक्षेप करना पड़ा, तब कहीं जा कर वन विहार में दोनों जलीय जीवों के शव रखे जा सके।