कोलार में करोड़ों के राजस्व की चपत
एक ओर तो 100 करोड़ के बजट घाटे से उबरने के लिए नगर निगम हाथ-पांव मार रहा है, दूसरी ओर कोलार में ही 20 करोड़ राजस्व की चपत लग चुकी है। वह भी तब, जब पूरे भोपाल के मुकाबले सिर्फ कोलार में ही कर्मचारियों की तादाद तीन गुना से ज्यादा है और वार्ड स्तर पर सिर्फ संपत्तिकर जमा करने का ही काम होता है। बाकी सारे काम यथा, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, नामांतरण, नए कनेक्शन, बिल्डिंग परमिशन, राशनकार्ड आदि का काम नए-नए बने जोनल कार्यालयों में हो रहा है। कोलार के तहत बने नए बने पांच वार्डों में से जोन-18 में वार्ड क्रमांक- 80, 82 और 83 को शामिल किया गया है, जबकि जोन क्रमांक-10 में वार्ड क्रमांक-84 और 85 को मिलाया गया है। इन वार्डों में औसतन 13 से 15 कर्मचारी हैं, जबकि बाकी भोपाल के वार्डों में औसतन 5 से 8 कर्मचारी ही हैं। वहीं, कोलार के वार्डों में सिर्फ संपत्तिकर जमा करने का ही काम होता है, बाकी जनहित की शासकीय योजनाओं से लेकर भवन अनुज्ञा, नामांतरण, राशन कार्ड, पेंशन आदि के काम जोन में किए जाते हैं। वहीं मजेदार तथ्य है कि, बाकी भोपाल में सारे काम वार्डों में ही किए जाते हैं और जोनल अधिकारी की मुख्य जिम्मेदारी संपत्तिकर वसूली का टारगेट पूरा करवाना और योजनाओं की मॉनीटरिंग होती है। उपभोक्ता याद रखे तो बचत आलम यह है कि कर्मचारियों की भरमार के बाद भी वार्डों में संपत्तिकर के खाते तक नहीं खुले, बल्कि आलम यह है कि, अगर उपभोक्ता ही पिछली बार के संपत्तिकर जमा करने की रसीद दिखाए तो बचत होती है। अन्यथा, बीते साल का पैसा भी जमा करने का दबाव होता है। हद तो यह है कि बिल्डिंग परमिशन की सैकड़ों फाइलों का पता नहीं है। ज्यादातर वार्डों से परमिशन की फाइलों सहित अन्य जरूरी रिकॉर्ड गायब हो चुका है। ऐसे में संपत्तिकर वसूली नहीं हो पा रही है।