प्रशासन ने नहीं लिया कोई सबक
केरवा डेम पर जानलेवा गड्ढों को भरने का काम शुरू ही नहीं हो सका और टेंडर निरस्त कर दिया गया। जंगल के बीच दो महीने के भीतर 24 लाख 53 हजार का काम पूरा करने की शर्त ऐसी रखी गई, जिसे कांट्रेक्टर पूरा ही न कर पाए। 26 मई 2015 को जल संसाधन विभाग द्वारा जारी ई-टेंडर 29 जून 2016 को टर्मिनेट कर दिया गया। इसके तहत संबंधित कंस्ट्रक्शन कंपनी को एम-10, एम-15 (सीमेंट कांक्रीट) व पत्थर भराई का काम दो महीने के भीतर करना था। इसके बाद विभाग की ओर से री-टेंडरिंग तक नहीं की गई, ताकि यहां प्रोटेक्शन वर्क शुरू किया जा सके।
केरवा नहर में मौत का कुआं से स्लूज गेट तक 50 मीटर के दायरे में फेंसिंग हो।स्लूज गेट की रिटेनिंग वॉल के जरिए केरवा नहर पार करने वालों को रोका जाए ।जंगल कैंप के चबूतरे के पास की फेंसिंग की ऊंचाई बढ़ाकर कंटीले तार लगें। केरवा पुलिस चौकी पर लाइफ जैकेट, ट्यूब व छोटी बोट जैसे बचाव उपकरण रखें।
मंदार एंड नो मोर मिशन से जुड़े वरिष्ठ वकील जीके छिब्बर का आरोप है कि शहर की वाटर बॉडीज में लगातार हो रहीं मौतों पर कोई विभाग गंभीर नहीं है।.ईको टूरिज्म, पर्यटन, वन, जल संसाधन विभाग व नगर निगम को ऐसे स्थानों को चिह्नित कर प्रोटेक्शन वर्क करने चाहिए।
पिता की मुहिम जारी
21 मार्च 2015 को छात्र मंदार की जान भी मौत के कुएं में डूबने से गई थी। इसके बाद उसके पिता विश्वास वेदघोषे ने एक मुहिम शुरू की। वे कहते हैं कि इन विभागों की उदासीनता के कारण हादसे नहीं रुक पा रहे हैं। यही विभाग किसी अफसर या राजनेता के स्वागत में लाखों रुपए खर्च देते हैं।