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"हिग्ज बोसोन" कण की खोज में विश्व के वैज्ञानिकों की टीम में भारत की भागीदारी बड़ी उपलब्धि है। वास्तव में भारत के महान वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस के योगदान को और आगे बढ़ाया गया है। ये विचार है विज्ञान महोत्सव में जिनेवा स्थित सर्न प्रयोगशाला की वरिष्ठ वैज्ञानिक और सीनियर एडवाइजर डॉ. अर्चना शर्मा के। डॉ. अर्चना शर्मा को हाल ही में इन्दौर में हुए प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सम्मानित किया है। वे अकेली भारतीय महिला वैज्ञानिक हैं,जो हिग्ज बोसोन अनुसंधान टीम की सदस्य थीं। उन्होंने कहा कि विज्ञान उत्सव आम लोगों को विज्ञान से जोड़ते हैं। आईआईएसएफ ने इस दिशा में योगदान किया है। विज्ञान और समाज में परस्पर रिश्ता है। विज्ञान को समाज से अलग करके नहीं देखा जा सकता। आज जो यंत्र और मशीनें दिखाई दे रही हैं, दरअसल ये विज्ञान की देन हैं। हम आम आदमी को वैज्ञानिक सफलताओं और उपलब्धियों की जानकारी इस तरह के उत्सव से दे सकते हैं।
डॉ. शर्मा ने बताया कि "हिग्ज बोसोन" कणों की खोज बड़े एक्सपेरीमेंट में हुई है। इसके लिए दो टीमें थीं - ‘एटलस’ और 'सीएमएस'। मैं सीएमएस टीम की सदस्य थी। उन्होंने बताया कि यह अनुसंधान कार्य कोई एक अकेला देश नहीं कर सकता। दुनिया भर के भौतिक विज्ञानी 40 वर्ष से इस खोज में लगातार जुटे हुए थे। डॉ. अर्चना शर्मा ने बताया कि 4 जुलाई 2012 को इस खोज की घोषणा हुई। यह विज्ञान जगत में ऐतिहासिक दिन था। उस क्षण वैज्ञानिकों में बहुत अधिक उल्लास और उत्तेजना थी। यह खोज सालों की मेहनत का नतीजा था। सर्न में एक सेमीनार में इसकी घोषणा की गई, जिसे पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों ने शेयर किया और खुशी जाहिर की।
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