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राजनीती तो राज की निति को ही कहा गया है। ऐसी ही कुछ राजनीती फ़िलहाल राजस्थान में देखने को मिल रही है। जहाँ सीएम पद के लिए कांग्रेस में बगावत होती दिखाई दे रही है। कांग्रेस में अध्यक्ष और राजस्थान में मुख्यमंत्री का चयन अब उलझता हुआ नज़र आरहा है। अशोक गहलोत के अध्यक्ष पद के नामांकन के बीच सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाने की संभावनाएं बनने लगीं है। जिसको लेकर गहलोत गट काफी नाराज़ नज़र आया। जिसके बाद उन्होंने विधायक दल की बैठक का बहिष्कार कर दिया है। उनका कहना है की कांग्रेस का अध्यक्ष चयन किये जाने तक गहलोत गुट का कोई भी सदस्य किसी भी तरह की मीटिंग में शमिल नहीं होगा। जिसपर पर्यवेक्षकों ने काफी ऐतराज़ जताया है। उन्होंने कहा विधायक दल की बैठक में विधायकों का नहीं आना अनुशासन हीनता है। इस बैठक के दौरान उन्होंने खुद बैठक बुला ली। ये भी अनुशासनहीनता है और हम देखते हैं कि क्या एक्शन लिया जा सकता है।हम एक-एक विधायक से मिलकर उनकी राय जानना चाहते थे, लेकिन वे सामूहिक रूप से मिलने पर अड़े रहे।
दरअसल गहलोत गुट के विधायक अपनी नाराज़गी के चलते हाईकमान से ही भिड़ गए। और उनकी मीटिंग के दौरान विधायकों ने अपनी ही एक मीटिंग रख ली। और जब गहलोत गट के विधायकों को एक एक कर उनकी रे जानने के लिए बुलाना चाहा तो वे लोग एक साथ जाने की बात पर अड़े रहे। और उन्होंने हाईकमान से तीन शर्तें रखीं। शर्तें थी की गहलोत गुट के 102 विधायकों में से ही कोई एक मुख्यमंत्री बने। उनकी दूसरी शर्त थी की कांग्रेस का अध्यक्ष का चयन होने क बाद ही मुख्यमंत्री की घोषणा हो। और उनकी तीसरी शर्त यह थी की नया मुख्यमंत्री जो भी हो वह गहलोत की ही पसंद का हो। शर्तों पर पर्यवेक्षकों ने ऐतराज़ जताया है। उन्होंने कहा की वे अपनी बात को रेजोल्यूशन में शामिल करने की मांग कर रहे थे। जबकि रेजोल्यूशन एक लाइन का होता है। कांग्रेस के इतिहास में सशर्त रेजोल्यूशन आज तक पास नहीं हुआ है। उन्होंने अध्यक्ष के चुनाव तक सीएम पर कोई चर्चा नहीं कराने की मांग रखी, यह संभव नहीं है, क्योंकि यह हितों के टकराव का मामला है।
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