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दो साल में बिछेगी 38 किमी लंबी पाइपलाइन
तीस साल पुरानी कोलार पाइप लाइन बदलने का काम टाटा प्रोजेक्ट्स को दिया जाएगा। केंद्र की अमृत योजना के तहत होने वाले इस काम पर लगभग 138 करोड़ रुपए खर्च होंगे। नगरीय विकास विभाग की स्टेट लेवल टेक्नीकल कमेटी की 20 अक्टूबर को होने वाली बैठक में इस पर मुहर लगने की संभावना है। दो साल के भीतर यह पाइप लाइन बिछ जाएगी। नई पाइप लाइन का आकार भी मौजूदा से अधिक होगा।
कोलार से निगम अभी 34 एमजीडी पानी सप्लाई करता है। मौजूदा ग्रेविटी मेन पाइप लाइन 1500 मिमी व्यास की है और वह भी सीमेंट की। नई पाइप लाइन का व्यास 1650 मिमी होगा। यह पाइप लाइन स्टील (एमएस) की होगी। फीडरमैन के लिए 1000 और 1500 मिमी के स्टील और 200 से 800 मिमी के आयरन (डीआई) पाइप बिछाए जाएंगे। इससे 12 एमजीडी क्षमता बढ़ जाएगी।
शहर की बड़ी आबादी को पानी सप्लाई करने वाली कोलार पाइप लाइन अब सड़ चुकी है। पूरी पाइप लाइन से लगातार पानी का लीकेज होता रहता है। पिछले पांच साल में इसमें 25 बड़े लीकेज हुए। यानी एक साल में औसत पांच बड़े लीकेज। गर्मी के दिनों में यह समस्या ज्यादा होती है। नतीजा शहर की 60 फीसदी आबादी को तीन दिन तक पानी नहीं मिलता। पाइप लाइन पर लगे एयर वाल्व भी लीकेज का बड़ा कारण बन गए हैं। नगर निगम के अफसर भी मानते हैं कि पाइप लाइन की सुरक्षा के लिहाज से यह खतरनाक साबित हो सकता है।
करीब 13 साल पहले तत्कालीन महापौर उमाशंकर गुप्ता ने कोलार समानांतर पाइप लाइन बिछाने का निर्णय लिया था। इसका वर्क ऑर्डर भी जारी हो गया था। करीब आठ हजार मीटर पाइप की सप्लाई भी हुई थी। यह अब भी बेकार पड़े हैं।
केंद्र सरकार की अमृत योजना के तहत कोलार पाइप लाइन बिछाने के प्रोजेक्ट पर 20 अक्टूबर को एसएलटीसी की बैठक में विचार होगा। इसके बाद इसका वर्क ऑर्डर जारी होगा। -आनंद सिंह, एक्जीक्यूटिव इंजीनियर, नगरीय विकास विभाग
आबादी का विस्तार- पहले इस इलाके की आबादी कम होने के कारण पाइप लाइन बिछाने में दिक्कत नहीं हुई। अब कोलार रोड लगभग डेढ़ लाख आबादी है। इस घने क्षेत्र से अतिक्रमण हटाना मुश्किल होगा। शहर के अन्य हिस्सों में भी कोलार लाइन के आसपास छोटे-बड़े निर्माण कार्य हैं। सड़कों के पास से बिजली के खंभों को शिफ्ट किया जाना भी आसान नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी- इसलिए जरूरी है क्योंकि बीच में अभयारण्य से होकर यह लाइन गुजरती है। 1998 में गोदावर्मन केस में यह व्यवस्था दी थी कि अभयारण्य में किसी भी प्रकार के निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट की साधिकार समिति से मंजूरी लेना होगी। जबकि पहले वन संरक्षण कानून 1980 में केंद्र सरकार की इजाजत लगती थी। अफसरों का तर्क है कि अभयारण्य वाले हिस्से में पाइप लाइन बदले बिना भी काम चल सकता है।
नगर निगम परिषद ने 2 अप्रैल को हुई बैठक में इस काम के लिए 173 करोड़ रुपए की मंजूरी दी थी। अगस्त में जब टेंडर हुए तो लागत 162 करोड़ रुपए होने का अनुमान लगाया गया। दस बड़ी कंपनियों ने टेंडर में भाग लिया और टाटा प्रोजेक्ट्स का टेंडर सबसे कम 138 करोड़ रुपए रहा।
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