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बीजेपी संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाहर होने के बाद राजनीति का सियासी पारा गर्मा गया है। 2013 से शिवराज सिंह चौहान बीजेपी की संसदीय बोर्ड के सदस्य थे। और बतौर मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश में अपनी चौथी पारी खेल रहे हैं। एमपी में चुनावी मोड में आ चुका है और 2023 विधानसभा चुनाव का लगभग एक साल बचा हुआ है और ऐसे में शिवराज का संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से बाहर होने से सियासी गलियारों में कई मायने निकाले जा रहे हैं। बता दें कि संघ के करीबी उज्जैन से सात बार सांसद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया के सहारे प्रदेश में बीजेपी ने दलित कार्ड खेल दिया है। प्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए 35 सीटें रिजर्व हैं। और प्रदेश की 84 विधानसभा सीटों पर दलित वोटर जीत हार तय करते हैं।
अगर पिछले चुनाव और उपचुनाव के नतीजों को देखे तो दलित वोट बैंक पर बीजेपी की पकड़ लगातार कमजोर होती दिख रही है। और कांग्रेस लगातार इस वोट बैंक को अपने साथ रखने में कामयाब हो रही हैं। एमपी में हुए उपचुनाव में अनुसूचित जाति के लिए अरक्षित कई सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। इनमें ग्वालियर चंबल की आने वाली डबरा विधानसभा सीट, भिंड की गोहद और शिवपुरी की करैरा सीट , और मालवा में आने वाली आगर सीट शामिल हैं।
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