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वैसे तो मध्य प्रदेश में निकायों के नतीजों के करीब डेढ़ साल बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन निकायों के नतीजों को 2023 का ट्रेलर माना जा रहा है। अब सवाल है कि आखिर इसके पीछे वजह क्या है? दरअसल निकाय के नतीजों के बाद 2023 के चुनाव होंगे। हार-जीत से बड़ा संदेश जाएगा जिसका जनाधार बढ़ेगा, 2023 में वो मजबूत होगा। इसके साथ ही उन मुद्दों की परीक्षा होगी, जिनके नाम पर पार्टियों ने वोट मांगे हैं। जनता के मूड का भी पता चल जाएगा। खास बात यह है कि ओबीसी आरक्षण से नफा-नुकसान का पता चल सकेगा। जहां कमजोर रहेंगे, वहां मेहनत का मौका मिलेगा। इतना ही नहीं किसका चेहरा कितना प्रभावी है, कहा तो ये भी जा रहा है कि दूसरे नेताओं की भी परीक्षा होगी. क्षेत्रीय क्षत्रप बड़े बड़े दावे करते रहे हैं. ऐसे में अगर उनके इलाके में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा, तो उनके कद पर भी आंच आएगी। सवाल यह भी है कि आखिर निकाय और पंचायत चुनाव पर पार्टियों का इतना फोकस क्यों रहा? तो सीधे तौर पर इसके पीछे सियासी जमीन बड़ी वजह है। दरअसल पंचायत अध्यक्ष का बड़ा रोल होता है। जिसके समर्थक ज्यादा होंगे, उसका दबदबा उतना बड़ा होगा, गांवों में पैठ बढ़ाने में आसानी होगी। इससे 2023 में चुनावी राह आसान होगी। इसी तरह निकायों में बढ़त से शहरी मतदाता सधेंगे। शहरों में माहौल बनाने में आसानी होगी। शहरों में छोटे-छोटे काम करने में आसानी होती है। गली मोहल्लों में काम से फायदा होता है। वोटरों का रुख बदलता हैऔर चूंकि निकाय चुनाव के समानांतर विधानसभा चुनाव की भी तैयारी हो रही है,ऐसे में अभी के नतीजों का प्रभाव भी उस पर पड़ेगा। इसीलिए निकाय चुनाव में पार्टियों ने हर इलाके में पूरा ज़ोर लगाया हैं।
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