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अवधेश पुरोहित
अक्सर बम्बईया फिल्मों में मुन्नाभाईयों के इलाके बंटे दिखते हैं, यही नहीं इन इलाकों की सीमाएं भी निर्धारित हैं, यही नहीं उनके द्वारा निर्धारित इलाकों में कोई मुन्नाभाईयों का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करता और इसको लेकर चकू-छुरियों से लेकर गोला-बारूद तक के दृश्य अक्सर बम्बईया फिल्मों में अक्सर दिखाई देते हैं। लेकिन पता नहीं मध्यपदेश के भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को क्या हो गया जो इन दिनों पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे को भूलकर अब बम्बईया फिल्मों की तर्ज पर अपने-अपने एरिया निर्धारित कर रखे हैं, उनके द्वारा निर्धारित इलाकों में कोई भी नेता बिना उनकी अनुमति के प्रवेश करते दिखाई नहीं देता। वैसे तो यह परम्परा भाजपा के नेताओं ने पूरे प्रदेश में कायम कर रखी है, लेकिन राजधानी में इसके कई अजूबे देखने को मिल रहे हैं, जिसके चलते महापौर तो क्या पूरी राजधानी के विधायकों की हिम्मत कोलार में बिना उस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि की सहमति के जाने की जुर्रत तक नहीं हो रही है, हालांकि क्षेत्र की जनता महापौर के कोलार क्षेत्र में प्रवेश न करने के कारण विकास से वंचित है और वह चाहती है कि महापौर उनके क्षेत्र में पधारे तो इसको लेकर जनता ने सड़कों पर प्रदर्शन से लेकर अब भगवान की भी शरण ले रखी है, जिसके चलते पिछले दिनों महापौर के कोलार क्षेत्र में आने के लिये सद्बुद्धि देने को लेकर हवन, पूजन का भी सहारा लिया लेकिन इसके बावजूद भी ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा, यह तो है मुन्नाभाईयों की तरह भाजपा के जनप्रतिनिधियों का एक-दूसरे के इलाके में न घुसने देने का उदाहरण, लेकिन अब तो एक-दूसरे के क्षेत्र में नगर निगम के अधिकारियों से लेकर कोई भी सरकारी कर्मचारी कोई कार्यवाही करने की जुर्रत नहीं कर पाता, इसका भी एक उदाहरण पिछले दिनों नगर निगम की नजर में अवैध रेस्टोरेंट गिराने को लेकर भोपाल मध्य के विधायक सुरेन्द्रनाथ सिंह (मम्मा) जिनकी छवि जमीन से जुड़े और जिनके शांत स्वभाव वाला नेता माना जाता है उनकी नगर निगम के अतिक्रमण हटाओ दस्ते के अधिकारियों से बहस हुई, तो वहीं उनके ही क्षेत्र में नगर निगम के अतिक्रमण हटाओ दस्ते के द्वारा गरीब छोटे-छोटे व्यापारियों को अवैध रूप से अतिक्रमण कर ठेला गुमठी लगाकार कारोबार करने वाले गरीब दुकानदारों को अतिक्रमण अधिकारियों द्वारा बेदखल करने और उनकी गुमठी ठेला जप्त करने के बाद उनसे मुंह मांगी रकम मांगने को लेकर सुरेन्द्रनाथ को जो गुस्सा आया तो उनका शांत स्वभाव ने उबाल लिया और उन्होंने अपने समर्थकों के साथ जाकर नगर निगम द्वारा की गई कार्यवाही का विरोध किया और खुद खड़े होकर नगर निगम द्वारा जब्त ठेले, गुमठियों को अतिक्रणकारियों को जबरिया वापस दिलवाया। इस घटना को लेकर अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस तरह से लगातार सत्ता में रहने का नेताओं का अहंकार कहें या कहीं गरीबों की सुनवाई न होने की खीझ के बाद राजधानी में भाजपा के सबसे शांत और लोकप्रिय विधायक माने जाने वाले सुरेन्द्रनाथ सिंह का इस तरह का गुस्सा देखकर अब लोग यह कहते नजर आ रहे हैं कि आखिर क्या हो गया मम्मा को, जो उनको इतना गुस्सा आया कि उन्होंने खड़े होकर अतिक्रमण अधिकारियों के कब्जे से उनके द्वारा जब्त ठेले और गुमठियां उठवाई, हालांकि नगर निगम के द्वारा पिछले कुछ दिनों से की जा रही इस तरह के अवैध अतिक्रमण के नाम पर कार्यवाही को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं तो लोग यह कहते हुए नजर आ रहे हैं कि एक ओर तो यही नगर निगम के अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपने समर्थकों से अतिक्रमण करवाते हैं और दूसरी ओर नगर निगम के तोडफ़ोड़ दस्ते द्वारा बिना सूचना दिये जिस तरह की कार्यवाही की जाती है आखिर वह क्या उचित है। तो नगर निगम के अधिकारियों को यह भी समझ में नहीं आता कि आखिर शहर के गली-चौक चौराहों और नाले-नालियों पर इस तरह का अवैध अतिक्रमण किसकी शह पर हो जाता है और इसके पीछे कौन होता है और जब इस तरह का अतिक्रमण हो रहा होता तब यही नगर निगम के वार्ड दरोगा से लेकर वार्ड प्रभारी और अन्य अधिकारी धृतराष्ट्र बनकर लक्ष्मी दर्शन में लगे रहते हैं और उसकी बदौलत नाले-नालियों पर आलीशान भवन तन जाते हैं तो चौक चौराहों पर ठेेले व गुमठियां लगाकर लोग अतिक्रमण करते हैं उस समय यदि यह अधिकारी अपने हितों का ध्यान न रखते हुए नगर के यातायात का ध्यान रखें तो हमारे जनप्रतिनिधियों को लंका में हनुमान की तरह कूदने का अवसर ही नहीं आये लेकिन नगर निगम के अधिकारी जब अतिक्रमण होता है तो चुपचाप देखते रहते हैं और बाद में इसे हटाते हैं तो एक ओर तो कानून व्यवस्था की स्थिति बनती है तो जनप्रतिनिधियों के अपने-अपने क्षेत्र में उनके समर्थकों के बीच उनकी गिरती साख बचाने की भी बनती है। यदि इस सब स्थिति को ध्यान में रखते हुए नगर निगम के अतिक्रमण हटाने के पहले जहां-जहां जिन-जिन लोगों ने अतिक्रमण किया उसके जिम्मेदार नगर निगम के अधिकारियों फिर चाहे वह वार्ड का दरोगा हो या फिर वार्ड प्रभारी या जिसकी जिम्मेदारी इस मामले में बनती है उनके खिलाफ यदि कार्यवाही हो तो शायद यह स्थिति न बने, लेकिन यह सब खेल पहले तो लक्ष्मी दर्शन और जनप्रतिनिधियों की लोकप्रियता के फेर में होता है और बाद में जब तोडफ़ोड़ होती है तो फिर लोगों के बेरोजगार होने की नौबत आती है, मामला जो भी हो लेकिन राजधानी में पिछले कुछ दिनों से अतिक्रमण हटाने की जिस तरह की मुहिम नगर निगम ने चला रखी है, उसको लेकर तरह-तरह के सवाल भी खड़े हो रहे हैं। एक ओर जहां नगर निगम के तोडफ़ोड़ दस्ते द्वारा छोटे मजदूरों की रोजी-रोटी बड़ी आसानी से छिन्ने का दौर चल रहा है, तो वहीं इसी मुहिम के चलते बड़े-बड़े पहुंच वाले लोगों के तने अवैध आलीशान भवनों की और नगर निगम के अधिकारी धृतराष्ट्र की भूमिका अपनाने में लगे हैं नगर निगम की इस तरह की दोहरी कार्यवार्ही को लेकर राजधानी में चर्चाओं का दौर जारी है।
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