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भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बुधवार को अमर शहीद हेमू कालाणी और प्रसिद्ध समाजवादी नेता तथा विचारक डॉ. राममनोहर लोहिया की जयंती पर उनका स्मरण किया। मुख्यमंत्री चौहान ने अपने निवास कार्यालय स्थित सभागार में हेमू कालाणी और डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के चित्र पर माल्यार्पण किया। खजुराहो सांसद तथा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी.डी. शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने भी माल्यार्पण किया।
मुख्यमंत्री चौहान ने ट्वीट कर कहा कि "महान स्वतंत्रता सेनानी, अल्पायु में अपना प्राणोत्सर्ग कर देने वाले वीर सपूत हेमू कालाणी की जयंती पर कोटिश: नमन् करता हूं। मातृभूमि की सेवा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले देश के बहादुर बेटे की गौरवगाथा सर्वदा युवाओं को राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करती रहेंगी।"
मुख्यमंत्री ने डॉ. लोहिया स्मरण करते हुए कहा कि " राष्ट्रवादी व तेजस्वी विचारों से समाज को जागृत कर नई दिशा देने वाले महान समाजवादी नेता, राम मनोहर लोहिया जी की जयंती पर कोटिश: नमन! आपके पुण्य विचार सदैव राष्ट्र व समाज के नवनिर्माण के लिए प्रेरित करते रहेंगे।"
उल्लेखनीय है कि सिंध प्रांत के सख्खर में 23 मार्च 1923 को जन्में, अमर शहीद हेमू कालाणी क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। उन्होंने अपने साथियों के साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का आग्रह किया। वर्ष 1942 में वे भारत छोड़ो आन्दोलन में कूद पड़े। उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना की हथियारों से भरी रेलगाड़ी, रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी। हेमू कालाणी ने अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त-व्यस्त करने की योजना बनाई। वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे पर फिर भी वहाँ पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उन पर पड़ी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। हेमू कालाणी को कोर्ट ने फाँसी की सजा सुनाई। दिनांक 21 जनवरी 1943 को उन्हें फाँसी दी गई। इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता के जय घोष के साथ उन्होंने फाँसी को स्वीकार किया।
डॉ. राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को फैजाबाद में हुआ था। बनारस से इंटरमीडिएट और कलकत्ता से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए लंदन के स्थान पर बर्लिन का चुनाव किया था। डॉ. लोहिया चाहते थे कि व्यक्ति-व्यक्ति के बीच कोई भेद, कोई दुराव और कोई दीवार न रहे। सब जन समान हो, सबका मंगल हो। जनता को वह जनतंत्र का निर्णायक मानते थे। उनके व्यक्तित्व का स्वतंत्र भारत की राजनीति और चिंतन धारा पर गहरा असर रहा। लोहिया जी का 57 वर्ष की आयु में 12 अक्टूबर 1967 को देहांत हुआ।
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