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'आखिर कलियासोत नदी के 33 मीटर के दायरे तक नो कंस्ट्रक्शन जोन में झुग्गियां, कच्ची बस्ती और कॉलोनियां कैसे बस गईं? इनको परमिशन किसने दी है? नगर निगम और जिला प्रशासन इस बात की जांच करें कि कौन-कौन सी बस्तियां जलभराव क्षेत्र में आ रही हैं। उनके पुनर्वास और विस्थापन के लिए तत्काल कार्रवाई की जाए।'
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कलियासोत नदी मामले में सुनवाई के दौरान शुक्रवार को यह आदेश दिए हैं। ट्रिब्यूनल ने नगर निगम और जिला प्रशासन पर नाराजगी जताई। साथ ही जल संसाधन विभाग और नगर निगम से कहा है कि कलियासोत नदी के किनारे इस मानसून में बाढ़ की जांच करें कि यह प्राकृतिक पानी था या फिर डेम से छोड़ा गया पानी। यहां कॉलोनी, बिल्डिंग प्रोजेक्ट और शैक्षणिक संस्थान नदी से कितनी दूरी पर हैं। आदेश के पालन के लिए पांच सप्ताह की मोहलत दी गई है। अगली सुनवाई 14 सितंबर को होगी।
एनजीटी ने मीडिया में प्रकाशित खबरों का हवाला देते हुए कहा कि इनसे यह बात सामने आई है कि कच्ची बस्ती और स्लम क्षेत्र नदी के किनारे जलभराव क्षेत्र में हैं। इससे उनके बाढ़ में बहने का खतरा बना हुआ है। प्रथम दृष्टया देखकर लग रहा है कि यह बस्तियां नदी से 33 मीटर के दायरे में ही हैं।
मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपी पीसीबी) ने कलियासोत नदी के किनारे बनीं 24 कॉलोनियों और बिल्डिंग प्रोजेक्ट्स की रिपोर्ट सौंपी। इसमें बताया गया कि सिर्फ पांच कॉलोनियों में ही सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाए गए हैं, जबकि बाकी में सेप्टिक टैंक और गड्ढा कर छोड़ दिया है। इनमें सीवेज के ट्रीटमेंट की कोई व्यवस्था नहीं है। गंदा पानी सीधे ड्रेनेज लाइनों में छोड़ा जा रहा है, जो कलियासोत नदी में मिल रहा है। इस रिपोर्ट पर ट्रिब्यूनल ने नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग और नगर निगम को आदेशित किया है कि दोषियों पर तत्काल कार्रवाई की जाए।
याचिकाकर्ता डॉ. सुभाष सी. पांडेय ने कलियासोत नदी में छोड़े जा रहे कॉलोनियों के गंदे पानी और 33 मीटर ग्रीन बेल्ट को बचाने के लिए एनजीटी में याचिका लगाई थी। इस पर सुनवाई के बाद 20 अगस्त 2014 को अंतिम आदेश हुए थे। इसमें कहा गया था कि नदी से 33 मीटर दूर तक ग्रीन बेल्ट को नो कंस्ट्रक्शन जोन घोषित किया जाए। सीमांकन कर मुनारे लगाई जाएं। नदी में कॉलोनियों का गंदा पानी न मिले। इसके लिए सभी कॉलोनियों में एसटीपी सुनिश्चित कराया जाए। इस दौरान ट्रिब्यूनल ने यह सुझाव दिया कि बिल्डर, रहवासी व सहकारी समितियों, कॉलोनाइजरों से जनभागीदारी से एसटीपी का निर्माण कराया जा सकता है।
सीमांकन के लिए नगर निगम, जिला प्रशासन, टीएंडसीपी की टीम गठित हुई, लेकिन सीमांकन व मुनारे लगाने का काम पूरा नहीं हुआ। 33 मीटर दायरे में कितने मकान आ रहे हैं, पूरी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई। एसटीपी के लिए भी कोई प्रयास नहीं किए गए।
सर्वधर्म ए-बी सेक्टर, दामखेड़ा ए-बी सेक्टर, मंदाकिनी, शिरडीपुरम क्षेत्र में बिल्डिंग व मल्टीस्टोरी बनी हैं। नदी को बाउंड्रीवॉल बनाकर डायवर्ट किया गया है। यदि कलियासोत बांध के सभी 11 गेट खुलते हैं तो बाढ़ के कारण झुग्गियां बहने और मिट्टी के कटाव से नदी किनारे बनी कॉलोनियों के गिरने का खतरा है।
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