भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा का सात दिवसीय शीतकालीन सत्र चार दिन में ही समाप्त हो गया। सत्र के चौथे दिन शुक्रवार को सदन की कार्यवाही हंगामेदार रही। विधानसभा में अतिथि विद्वान, अतिथि शिक्षक और संविदा शिक्षकों, किसानों की कर्जमाफी, टोल टैक्स वसूली जैसे कई मुद्दों पर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच जोरदार नोंकझोंक हुई। सदन में विपक्ष के लगातार हंगामे के कारण विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने विधानसभा की कार्यवाही को अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित कर दिया।
विधानसभा में सरकार को घेरने के लिए विपक्ष ने पहले से ही तैयारी कर ली थी। प्रदेश में गहराते यूरिया संकट और पूर्ववर्ती सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं को वर्तमान सरकार द्वारा बंद करने के मुद्दे को लेकर शुक्रवार को भाजपा विधायक बिड़ला मंदिर से पैदल मार्च करते हुए विधानसभा पहुंचे। इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आरोप लगाये कि सरकार ने संबल योजना को बंद कर दिया। गरीबों के साथ अत्याचार किया जा रहा है। अगर कही फर्जीवाड़ा हुआ था तो उसकी जांच कर कार्रवाई की जाना चाहिए थी। लेकिन पूरी योजना ही बंद करदी। वहीं, अतिथि शिक्षिकों को नियमितिकरण को लेकर भी सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया।
उन्होंने कहा कि सरकार ने गरीबों से उनकी अंत्येष्टि तक के पांच हजार बंद कर दिए। कन्या विवाह राशि भी अभी तक प्रदेश में किसी भी जोड़े को नहीं दी गई है। पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भी कमलनाथ सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार ने गरीबों से बिजली बिल वसूल कर रही है। जनता परेशान है। लेकिन सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं है। इस दौरान नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव समेत सभी भाजपा विधायक मौजूद रहे।
इसके बाद विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुई, जिसमें विधायकों ने कई मुद्दे उठाये, जिन पर सदन में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तीथी नोंकझोंक हुई। विपक्ष के हंगामे के बीच सत्ता पक्ष ने विधेयकों को पारित करा लिया। विपक्षी विधायक कई मुद्दों को लेकर सत्तापक्ष को घेरते हुए गर्भ गृह तक पहुंच गए। शून्यकाल के दौरान नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने अतिथि विद्वान, अतिथि शिक्षक और संविदा शिक्षकों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि यह सभी लोग परेशान हैं। अतिथि विद्वान मुंडन करा रहे हैं सरकार की कोई स्पष्ट नीति नहीं है। डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने पूछा कि कांग्रेस ने वचन पत्र में इन्हें नियमितीकरण करने का वादा किया था कि नहीं। इसका जवाब जीतू पटवारी ने देते हुए कहा कि वचन पत्र में जो वादे किए गए हैं, वह हर हाल में पूरे किए जाएंगे। अतिथि विद्वानों के लिए कार्य योजना बनाई जा चुकी है। किसी भी अतिथि विद्वान को निकाला नहीं जाएगा, अतिरिक्त पद बनाए जा रहे हैं। डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि मंत्री अतिथि विद्वानों को धमका रहे हैं।
इसके बाद आईएएस अधिकारी गौरी सिंह द्वारा वीआरएस लिए जाने का मामला भी सदन में गूंजा। पूर्व मंत्री शिवराज सिंह चौहान, नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव ने आईएएस अफसरों को प्रताडि़त करने का आरोप लगाते हुए कहा कि जब आईएएस अफसर के ऐसे हालात हैं तो बाकी कर्मचारियों का क्या रहो रहा होगा। इस मुद्दे को लेकर विपक्ष के विधायकों ने शून्यकाल के दौरान गर्भ गृह में पहुंचकर नारेबाजी की, विपक्ष के जमकर हंगामे के दौरान विधानसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।
विपक्ष ने सरकार पर पूरक पोषण माफिया के दबाव में काम करने का आरोप लगाया। सत्ता पक्ष की ओर से सज्जन सिंह वर्मा, तरुण भनोत ने इसका जवाब दिया। सज्जन सिंह वर्मा ने कहा कि असली वजह यह नहीं है, यह कदम उनके द्वारा पंचायत राज्य संस्थाओं के आरक्षण संबंधी आदेश को बिना किसी उच्च स्तरीय अनुमोदन के जारी किए जाने के चलते तबादला किया गया था। तरुण भनोट ने कहा कि वल्लभ भवन में दलाल बैठते हैं ऐसा कहना सरासर गलत है। वहां पर नेता, कार्यकर्ता, आम जनता सभी आते हैं। वहीं कमलेश्वर पटेल ने भी कहा कि पंचायतों का आरक्षण देना अनुमोदन के घोषित कर दिया था, यह संवैधानिक नहीं है नियम विरुद्ध है, इस मुद्दे को लेकर शून्यकाल में जबरदस्त हंगामा हुआ।
संसदीय कार्य मंत्री ने शून्यकाल में विपक्ष द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दे पर मंत्री से जवाब दिलवाने की व्यवस्था पर कहा कि इस तरह का कोई नियम नहीं है। यदि नियम हो तो बताएं। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि हमने पिछले सत्र में यह व्यवस्था की थी कि कुछ ज्वलंत मुद्दे होते हैं, जिन पर चर्चा होनी चाहिए। इसके लिए ही यह व्यवस्था बनाई गई थी। भारी हंगामे के बीच विधानसभा अध्यक्ष ने सदन में शासकीय कार्यों को कराने का क्रम जारी रखा। वहीं, विपक्ष के सदस्यों द्वारा गर्भ गृह में नारेबाजी की जाती रही। भारी हंगामे के चलते विधानसभा अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी।
बता दें कि मध्यप्रदेश विधानसभा का सात दिवसीय गत 17 दिसम्बर को शुरू हुआ था, जो कि 23 दिसम्बर तक चलना था। इस दौरान सदन की पांच बैठकें होनी थी, लेकिन चौथे दिन शुक्रवार को ही यह सत्र समाप्त हो गया।