मोदी ने तोड़े कई मिथक
लोकसभा चुनाव 2014 के नतीजे कई मायनों में दिलचस्प हैं। एक तरफ जहां जातिगत आधार पर वोटिंग का ट्रेंड टूटता हुआ दिखा है वहीं मुस्लिम वोटरों ने लीक से हटकर भाजपा को कई जगहों पर जीत दिलाने में मदद की है। भाजपा अभी तक दलित और निचले तबके से दूर मिडिल और अपर क्लास की पार्टी समझी जाती थी, लेकिन मोदी की अगुवाई में बिहार और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में उसे इस तबके का जबर्दस्त साथ मिला है। वहीं जो क्षेत्रीय पार्टियां अपनी जाति का वोट बैंक नहीं छिटकने का दंभ पाले हुए थीं, उनको भी जबर्दस्त झटका लगा है। बिहार में लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी और बेटी मीसा भारती की हार इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। उत्तर प्रदेश में पार्टी ने सभी 17 सुरक्षित सीटें अपने नाम कर ली हैं तो बिहार में भी एनडीए गठबंधन ने सभी 6 रिजर्व सीटों पर अपना झंडा फहराया है। बिहार की 6 सुरक्षित सीटों में से तीन भाजपा और तीन उसकी सहयोगी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी को मिली है। खास बात यह है कि इन सीटों पर एनडीए को बड़े अंतर से जीत मिली है। इससे ऐसा लगता है कि चुनाव से पहले भाजपा ने रामविलास पासवान, उदित राज और रामदास अठावले जैसे दलित चेहरों को अपने साथ लाने की जो कवायद की थी, उससे पार्टी को फायदा मिला है। उधर, मुस्लिम वोटरों ने भी इस बार बढ़-चढ़कर भाजपा के पक्ष में वोटिंग की है। पार्टी ने उन 92 सीटों में से 38 सीटें अपने बूते पर हासिल की हैं जहां मुस्लिम वोटरों की तादाद 20 प्रतिशत से ज्यादा है। एक और ट्रेंड यह है कि हाल के सालों में जिन लोकसभा सीटों को शहरी घोषित किया गया है, वहां पर भाजपा को जबर्दस्त जीत मिली है। 2009 के मुकाबले ऐसी सीटों पर भाजपा की जीत का आंकड़ा दोगुने के करीब है। इस तरह की करीब 50 सीटों के आंकड़ों के अध्ययन से इस बात का पता चला है। इस लोकसभा चुनाव में पहली बार नोटा (नॉन ऑफ द अबव) बटन का ऑप्शन दिया गया था। वोटरों ने इसका भी खूब फायदा उठाया। कई जगह पर नोटा ने जीत-हार का फैसला करने में अहम भूमिका निभाई। इसका एक उदाहरण मध्य प्रदेश की सतना सीट है। यहां पर कांग्रेसी उम्मीदवार अजय सिंह नोटा की वजह से हार गए। अजय सिंह 8688 वोटों से हारे और इस सीट पर 13036 वोटरों ने नोटा का बटन दबाया था। इस चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों के दबदबे का ट्रेंड भी टूटा है। 1996 से 2009 के बीच गैर कांग्रेसी-गैर बीजेपी वोट शेयर का प्रतिशत 50 के करीब था। 2009 में यह सबसे ज्यादा 53 प्रतिशत तक पहुंच गया। लेकिन इस बार इसमें काफी गिरावट आई है। इस चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों का वोट शेयर 47 प्रतिशत के करीब है।(kolar)