जबलपुर/भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने निगम एक्ट में संशोधन कर पार्षदों को मेयर के निर्वाचन का अधिकार दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका बुधवार को खारिज कर दी है। याचिका में एक्ट में किए गए संशोधन को अवैधानिक करार दिया गया था। हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश संजय यादव और न्यायाधीश अतुल श्रीधरन ने पाया कि एक्ट में संशोधन नियम अनुसार किया गया है। याचिका में कोई कानूनी तथ्य नहीं होने के कारण युगलपीठ ने उसे खारिज कर दिया।
गौरतलब है कि जबलपुर के अनवर हुसैन ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए कहा था कि राज्य सरकार ने नगरपालिका अधिनियम में संशोधन किया है। इसमें नगर निगम महापौर व अन्य निकायों के अध्यक्ष पद का निर्वाचन अप्रत्यक्ष प्रणाली से निर्वाचित पार्षदों के जरिए करने की व्यवस्था की गई है। हालांकि इससे पहले तक नगर निगम महापौर व अध्यक्षों का निर्वाचन प्रत्यक्ष प्रणाली से आम चुनाव के जरिए होने की व्यवस्था रही है। अधिवक्ता अजय रायजादा ने हाईकोर्ट को तर्क दिया है कि संविधान में अनुच्छेद का उल्लंघन करके नगर निगम एक्ट में संशोधन किया गया है। उधर, शासकीय अधिवक्ता हिमांशु मिश्रा ने हाईकोर्ट को बताया कि नगरीय निकायों की सभी सीटों के लिए संविधान के सभी इसी अनुच्छेद के अनुसार प्रत्यक्ष प्रणाली से निर्वाचन व्यवस्था है।
कैबिनेट में सरकार लाई थी अध्यादेश
डेढ़ दशक बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस सरकार ने 25 सितम्बर को महापौर के सीधे चुनाव खत्म करने के संबंध में कैबिनेट बैठक में अध्यादेश पारित किया था। साथ ही यह भी प्रस्ताव लाया गया था कि अब चुनाव से दो महीने पहले तक परिसीमन सहित अन्य निर्वाचन प्रक्रियाएं पूरी करनी होंगी। वर्तमान में छह माह का प्रावधान है। चुनाव में उम्मीदवार के गलत जानकारी देने पर 6 माह की जेल और 50 हजार का जुर्माने का प्रावधान किया जा रहा है।