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राजधानी में मोहर्रम की 10 तारीख मंगलवार को यौम-ए-आशूरा पर हजरत इमाम हुसैन की याद में मुस्लिम धर्मावलंबियों द्वारा शहर के कई चौक-चौराहों से परंपरागत जुलूस निकाले गए। इसमें 250 से अधिक ताजिए शामिल थे। जुलूस में अलम-ए-मुबारक तथा मातमी जत्थे भी चल रहे थे। उनके पीछे छोटे-बड़े आकर्षक ताजिया, सवारियां, अखाड़े, नगाड़े, ढोल, ताशे और मश्क आदि भी शामिल अपना करतब दिखाते हुए चल रहे थे। सबसे बड़ा जुलूस ऑल इंडिया मुस्लिम त्योहार कमेटी द्वारा निकाला गया। अन्य स्थानों से भी जुलूस निकले। इनमें किन्नरों द्वारा निकला जुलूस लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा। जुलूस में मुस्लिम समाज के अलावा हिंदू, सिख, ईसाई धर्मो के लोग भी शामिल हुए। सभी ने नेकी, सच्चाई, ईमानदारी के रास्ते पर चलने का संकल्प लिया।
सर्वधर्म के लोग हुए शामिल
ऑल इंडिया मुस्लिम त्योहार कमेटी द्वारा सर्वधर्म संभाव की तर्ज पर परंपरागत जुलूस निकाला गया। प्रमुख चौराहों पर उलेमाओं की मजहबी तकरीरें भी हुई। शहर के विभिन्न चौक-चौराहों से शुरू हुए जुलूस पीरगेट पर पहुंचे। यहां से ताजिए, सवारियां लेकर गिन्नौरी घाट पहुंचे, जहां ताजिए ठंडे किए गए। मंगलवारा व बुधवारा में किन्नरों द्वारा आकर्षक ताजिए सजाए गए, जो लोगों के लिए मुख्य आकर्षण के केंद्र रहे। जुलूस मार्ग में अकीदतमंदों द्वारा 'हम हुसैन के गुलाम हैं, या हुसैन, हक हुसैन, मौला हुसैन' आदि नारे लगाए गए। जुलूस मार्ग में अखाड़ा में फनकारों ने हैरत अंगेज करतब दिखाए। इस दौरान जुलूस में अकीदतमंदों की भारी भीड़ उमड़ी। प्राचीन कर्बला मैदान पर हुसैनी भंडारा लंगर-ए-आम हुआ। पीरजादा डॉ. खुर्रम ने बताया कि इस दसवें मोहर्रम के दिन इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने प्राण त्याग दिए थे। यही कारण है कि मुसलमान भाई इस महीने को गम के रूप में मनाते हैं और अपने हर किसी खुशी का त्याग कर देते हैं। मोहर्रम कोई त्योहार नहीं, यह दिन अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है। इस मौके पर मुस्लिम धर्म के उलेमा के अलावा हिंदू, सिख, ईसाई धर्मावलंबी भी शामिल थे।
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