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हर साल महज 10 फीसदी फीस बढ़ाने को लेकर निजी स्कूल संचालकों ने अपना रुख साफ कर दिया है। उन्होंने 'मप्र निजी विद्यालय फीस अधिनियम" की शर्तों पर आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा है कि इतनी कम वृद्धि से काम नहीं चलेगा। लिहाजा इस प्रावधान को खत्म किया जाना चाहिए। वहीं कानून की मार से बचने के लिए निजी स्कूल संचालकों ने अभिभावकों को ढाल की तरह इस्तेमाल किया है।
संचालकों का कहना है कि फीस के लिए जिला और राज्य स्तर पर गठित कमेटियों में अभिभावकों को भी शामिल नहीं किया गया है। स्कूल शिक्षा विभाग ने 26 जून को कानून का मसौदा सार्वजनिक किया है। विभाग ने 25 जुलाई तक इस पर दावे-आपत्तियां मंगाए थे। कानून की शर्तों में संशोधन के लिए एक महीने में एक हजार से ज्यादा आपत्ति आई हैं।
कानून के इन प्रावधानों को देखकर निजी स्कूल संचालक एक हो गए हैं और हर साल फीस बढ़ाने से लेकर कैशलैस सुविधा तक का विरोध शुरू कर दिया। संचालकों का कहना है कि महज 10 फीसदी फीस बढ़ाई तो स्कूल का खर्च तक नहीं निकलेगा। वहीं कैशलैस को लेकर उनकी आपत्ति है कि अधिकतर लोग ई-ट्रांजेक्शन नहीं करते हैं। इसलिए उन्हें फीस जमा करने में दिक्कत होगी। इससे स्कूल को भी परेशानी होगी।
आपत्ति दर्ज कराने वालों में स्कूल संचालक ज्यादा हैं, जबकि अभिभावक जागरूक नहीं दिखे। सबसे ज्यादा आपत्ति फीस वृद्धि को लेकर आई है। इस कानून में साल में महज 10 फीसदी फीस बढ़ाने और इससे ज्यादा मांगने पर फीस अमान्य करने का प्रावधान किया गया है, जो स्कूल संचालकों को मान्य नहीं है। अब विभाग सभी आपत्तियों की एकजाई जानकारी तैयार कर रहा है। फिर इन पर सुनवाई शुरू होगी।
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