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नवगठित आनंद विभाग के तहत प्रदेशभर में धूमधाम से खोले गए आनंदम् केन्द्रों (आनंद की दीवार,नेकी की दीवार ) को चलाने में सामाजिक संस्थाओं की अरुचि देख सरकार ने उन्हें बंद करने का फैसला कर लिया है। राजधानी में प्रारंभ से ही ठप पड़े चार केन्द्रों को औपचारिक तौर पर तालाबंदी का निर्णय हो गया है। इसी तरह जिलों में खोले गए ज्यादातर केन्द्र भी ठप हैं।सबसे पहली नेकी की दीवार कोलार रोड पर बनी थी वहां भी अब कुछ नहीं है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में सामाजिक संस्थाओं ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। डेढ़ साल पहले मकर संक्रांति पर राजधानी के टीटी नगर स्टेडियम में मुख्यमंत्री और कई मंत्रियों की मौजूदगी में बड़ी धूमधाम से प्रदेशभर में यह अभियान शुरू किया गया था।
मुख्यमंत्री ने वीडियो कान्फ्रेंस के जरिए एक साथ इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन और जबलपुर के केन्द्रों को संबोधित कर नागरिकों से बातचीत भी की थी। उस दिन मंत्री, अफसर, सामाजिक संगठनों और उद्योगपतियों ने बढ़-चढ़ कर सहयोग करने की घोषणाएं की थीं।
गैर सरकारी संगठनों का दो-तीन महीने में ही इन केन्द्रों से मोहभंग हो गया। पहले यह मांग भी उठी कि इन केन्द्रों को सरकार सीधे चलाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। समाज का सहयोग भी नहीं मिला। इसलिए धीरे-धीरे सामाजिक संस्थाओं ने जवाबदारी से अपने हाथ खींचना शुरू कर दिए। इस कारण सरकार को मन मारकर इन केंद्रों को बंद करने का फैसला करना पड़ा।
प्रदेश भर में खोले गए करीब पौने दो सौ केन्द्रों में भी कमोबेश यही स्थिति है। आधे से ज्यादा केन्द्र पहली सालगिरह भी नहीं मना पाए। प्रदेश में अब बमुश्किल उंगलियों पर गिनने लायक केन्द्र ही रह गए हैं। भोपाल में अब आधा दर्जन में से महज दो केन्द्र ही चल रहे हैं।
इनमें संजय तरण पुष्कर कोहेफिजा और कॉन्सेप्ट स्कूल टीटी नगर हैं, इसलिए जिला प्रशासन की ओर से गोविंदपुरा, स्वर्ण जयंती पार्क, बैरागढ़ और पॉलिटेक्निक चौराहा स्थित केन्द्रों की तालाबंदी की औपचारिक घोषणा कर दी गई। पिछले आठ माह से इन केंद्रों में गतिविधियां ठप पड़ी थीं।
मुख्यमंत्री की मंशा के अनुसार यह अनूठा प्रयोग राज्य आनंद संस्थान ने शुरू किया था। कान्सेप्ट यह था कि समाज के संपन्ना लोगों के पास यदि दैनंदिनी उपयोग की वस्तुएं अतिरिक्त हैं तो वे उसे इन केन्द्रों पर छोड़ जाएं। मसलन कपड़े, गद्दे, कंबल-चादर, बर्तन एवं फर्नीचर आदि। जिन्हें जरूरत है वे इन केन्द्रों से यह सामान उठा ले जाएं। शुरुआती उत्साह के कारण डेढ़-दो महीने ही यह प्रयोग ठीक ढंग से चल पाया।
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