Video

Advertisement


बाघ प्रदेश बन रहा है मध्यप्रदेश
बाघ प्रदेश बन रहा है मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश में निरंतर किये जा रहे प्रयासों से बाघों की संख्या बढ़ रही है। किशोर होते बाघों को वर्चस्व की लड़ाई और मानव द्वंद से बचाने के लिये वन विभाग ने अभिनव योजना अपनायी है। वन विभाग अनुकूल वातावरण का निर्माण कर बाघों को ऐसे अभयारण्यों में शिफ्ट कर रहा है, जहाँ वर्तमान में बाघ नहीं हैं। पन्ना में बाघ पुनर्स्थापना से विश्व में मिसाल कायम करने के बाद वन विभाग ने सीधी के संजय टाइगर रिजर्व में भी 6 बाघों का सफल स्थानांतरण किया है। बाघ शून्य हो चुके पन्ना में आज लगभग 30 बाघ हैं। अब नौरादेही अभयारण्य में बाघ पुनर्स्थापना का कार्य प्रगति पर है। मध्यप्रदेश केवल प्रदेश में ही नहीं देश में भी बाघों का कुनबा बढ़ा रहा है। जल्द ही प्रदेश उड़ीसा के सतकोसिया अभयारण्य को भी 3 जोड़े बाघ देगा। वन मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार स्वयं नौरादेही पहुँचकर ऑपरेशन का जायजा ले रहे हैं।

जबलपुर से 140 किलोमीटर दूर दमोह, सागर और नरसिंहपुर जिले में 1197 वर्ग किलोमीटर में फैले नौरादेही अभयारण्य में बहुत पहले कभी बाघ रहे होंगे। यह जंगल देश की दो बड़ी नदियों गंगा और नर्मदा का कछार होने के कारण यहाँ पानी की कमी नहीं है। वन विभाग ने पन्ना की तर्ज पर देश के सबसे बड़े इस अभयारण्य में बाघ आबाद करना शुरू कर दिया है। पिछले 18 अप्रैल को यहाँ कान्हा से ढ़ाई वर्षीय एक बाघिन और 29 अप्रैल को बाँधवगढ़ से लगभग पाँच वर्षीय बाघ का स्थानांतरण किया गया है। बाघिन तो नये वातावरण में रम गई है, पर बाघ को नये आवास का अभ्यस्त बनाने के लिये विभाग काफी मशक्कत कर रहा है। नौरादेही की टीम ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की टीम के साथ मिलकर युद्ध स्तर पर मात्र तीन दिनों में दोनों के लिये विशेष रूप से अलग-अलग बाड़ा तैयार किया है। प्रबंधन ने इन्हें एन-1 और एन-2 का नाम दिया है। बाघ का जोड़ा आने से स्थानीय लोगों में काफी उत्साह और गर्व की भावना है। वे इन्हें राधा-किसन के नाम से पुकारने लगे हैं।

वनमंडलाधिकारी श्री रमेशचन्द विश्वकर्मा ने बताया कि शुरू में एक-दो दिन असहज रहने के बाद बाघिन ने नये वातावरण के साथ सामंजस्य शुरू कर दिया है। वह शिकार भी कर रही है और एक हेक्टयेर में बने अपने बाड़े में स्वाभाविक रूप से दिनचर्या व्यतीत कर रही है। पास में स्थित मचान और एक वाहन के माध्यम से वन अधिकारी-कर्मचारी 24 घंटे बाघिन के स्वास्थ्य और सुरक्षा की निगरानी कर रहे हैं। बाघ ने स्वयं को बाड़े से आजाद कर दो-ढाई किलोमीटर की दूरी पर स्थित नाले के किनारे प्राकृतिक रूप से बनी खोह में अपना ठिकाना बना रखा है। दो सौ किलोग्राम से अधिक वजन वाला यह बाघ काफी तन्दरूस्त और शक्तिशाली है। शुरूआती दिनों में असहज रहने के बाद वह भी नये माहौल में घुलने-मिलने लगा है। बाघ के रेस्क्यू के लिये बांधवगढ़ से हाथी की टीम के साथ दल आ गया है। वन विभाग बाघ पर सतत निगरानी रखे हुए हैं। कुछ दिनों के बाद बाघ की पसंद को देखते हुए निर्णय लिया जायेगा कि इसे वापस बाड़े में पहुँचायें या उन्मुक्त जंगल में विचरण करने दें।

अभयारण्य में बसे गाँव के लोग भी इस काम में मदद कर रहे हैं। अभयारण में 69 गाँव थे, जिनमें से 10 गाँव का विस्थापन कर मुआवजा दिया जा चुका है। सात गाँव के विस्थापन की प्रक्रिया जारी है। इनमें 4 सागर और 3 नरसिंहपुर जिले के हैं। ग्रामीण भी खुश हैं कि अब उन्हें जंगल में होने वाली दिक्कतों से दो-चार नहीं होना पड़ रहा है। घर में बिजली है, कहीं आने-जाने के लिये सड़क और साधन हैं। तेंदुआ, सियार आदि जंगली जानवरों का भय भी नहीं रहा। रिक्त गाँवों में बड़ी मात्रा में घास विकसित की गई है। इससे शाकाहारी प्राणियों की संख्या बढ़ने से बाघों को भरपूर शिकार मिलेगा।

विस्थापन से मानव हस्तक्षेप खत्म होने से जंगल अपने प्राकृतिक स्वरूप में आता जा रहा है। यहाँ के भारतीय भेड़िया के साथ भालू, सांभर, चीतल, चिंकारा, जंगली बिल्ली आदि की संख्या बढ़ी है। पेंच राष्ट्रीय उद्यान से भी सात खेप में यहाँ 125 चीतल आ चुके हैं।

 

Kolar News 5 May 2018

Comments

Be First To Comment....

Page Views

  • Last day : 8796
  • Last 7 days : 47106
  • Last 30 days : 63782
x
This website is using cookies. More info. Accept
All Rights Reserved ©2025 Kolar News.