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सियासी जद्दोजहद के बाद कांग्रेस ने मध्यप्रदेश इकाई के अध्यक्ष पद पर वरिष्ठ नेता कमलनाथ की ताजपोशी कर दी। इस पद के दूसरे दावेदार सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष की जवाबदारी दी गई। क्षेत्रीय, गुटीय और जातीय संतुलन बैठाने की गरज से पहली बार चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति भी की गई है।
कांग्रेस आलाकमान ने ये नियुक्तियां ऐसे समय की है जब चुनाव के लिए महज छह माह का समय रह गया है। नाथ और सिंधिया की जोड़ी के सामने लगभग ढह चुके संगठन को दोबारा खड़ा करने और पिछले 15 साल में गांव-गांव, घर-घर तक पैठ बना चुकी भाजपा से दो-दो हाथ करने की चुनौती रहेगी।
मुकाबला शिवराज सिंह चौहान जैसे उस नेता से है, जिनका चेहरा प्रदेश में जाना पहचाना और लोकप्रिय है। फिर भाजपा का संगठन का ताना बाना गांव-गांव तक फैला हुआ है जो कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। इसके विपरीत गुटों में बंटी कांग्रेस को एकता के धागे में पिरोना भी आसान नहीं होगा। मध्यप्रदेश में कांग्रेस संगठन शुरू से दिग्गज नेताओं के बोझ तले दबा रहा। कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी, सत्यव्रत चतुर्वेदी, कांतिलाल भूरिया, अजय सिंह, अरुण यादव जैसे अनेक दिग्गज नेता अपने-अपने गुटों के साथ यहां सक्रिय है।
यदि यह नियुक्ति छह माह पहले हो जाती तो कमलनाथ को प्रदेश समझने का मौका मिल जाता। हालांकि इस फेरबदल का इंतजार पिछले दो-तीन साल से था, लेकिन पार्टी नेतृत्व यह तय नहीं कर पा रहा था कि कमलनाथ और सिंधिया में से किसे प्रदेश अध्यक्ष बनाएं और किसे चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष।
कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि नाथ के नाम पर पार्टी में एकराय बनाने में कांग्रेस नेतृत्व को काफी मशक्कत करना पड़ी। पार्टी के एक अन्य क्षत्रप दिग्विजय सिंह के नाथ के पक्ष में खुलकर आने के बाद उनकी राह आसान हुई और पार्टी सिंधिया को चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष बनने पर राजी कर पाई। सिंधिया 2013 के चुनाव में भी इस पद पर रह चुके हैं, इसलिए उनकी दिलचस्पी दोबारा उसी पद को लेने की कतई नहीं थी। चूंकि अभी तक कांग्रेस ने किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है, इसलिए सभी मिलकर काम करेंगे, ऐसी उम्मीद पार्टी को हैं।
लगभग 38 साल से प्रदेश की राजनीति में सक्रिय कमलनाथ को पहली बार प्रदेश स्तर पर कोई बड़ी जिम्मेदारी मिली है। अब तक वे सांसद और प्रदेश के कोटे से केन्द्रीय मंत्री रह चुके हैं। सूबे की सियासत में उनकी छवि किंग मेकर की रही है। हालांकि उनके विरोधी यह आरोप चस्पा करते रहे हैं कि उन्हें मप्र के जमीनी नेटवर्क का अनुभव नहीं है वे सिर्फ हवा हवाई नेता हैं।
नाथ के साथ पार्टी ने चार कार्यकारी अध्यक्ष भी घोषित किए हैं। इन चारों की नियुक्ति करते समय पार्टी ने सावधानी से क्षेत्रीय, जातीय और गुटीय संतुलन साधने पर ध्यान दिया है। बाला बच्चन निमाड़ अंचल से आते हैं, जहां के अरुण यादव को अध्यक्ष पद से हटाया है। बच्चन आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं और कमलनाथ के बेहद करीबी हैं।
दूसरे कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी मालवा अंचल के हैं और उनके तार सीधे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से जुड़े हुए हैं। वे पिछड़े वर्ग के नेता हैं। रामनिवास रावत ग्वालियर चंबल अंचल का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखते हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेहद करीबी हैं, जबकि सुरेन्द्र चौधरी बुंदेलखंड अंचल के हैं।
वे अनुसूचित जाति से हैं और कमलनाथ के करीबी है। बचे हुए महाकौशल अंचल से खुद अध्यक्ष कमलनाथ हैं और बघेलखंड से नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह। इस तरह आंचलिक संतुलन बैठाने के लिहाज से तो कांग्रेस का यह प्रयोग हाल फिलहाल सफल रहा।
कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में संगठन की कमान पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ को सौंपकर कई संदेश देने का काम किया है। निर्विवाद होने के साथ किसी गुट विशेष में शामिल नहीं हैं। गांधी परिवार के भरोसेमंद व्यक्तियों में शुमार हैं। नौ बार लोकसभा चुनाव जीतकर प्रबंधन कौशल का लोहा मनवा चुके हैं तो सभी बड़े नेताओं से तालमेल भी बेहतर है। अच्छे समन्वयक होने का सबूत विवेक तन्खा को राज्यसभा का चुनाव जितवाकर दे चुके हैं। आर्थिक तौर पर भी इतने मजबूत हैं कि पार्टी को चुनावी प्रबंधन में कोई कठिनाई नहीं आने देंगे।
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