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धनंजय प्रताप सिंह
भारतीय जनता पार्टी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे लोकप्रिय चेहरे होने के बावजूद पार्टी प्रदेश में सियासी तौर पर पिछड़ती नजर आ रही है। वजह ये है कि पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं है। लगातार उपेक्षा के कारण कार्यकर्ता नाराज होकर घर बैठ गए हैं।
14 साल में शासन में सत्ता- संगठन का एकमात्र चेहरा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रहे। बाकी मंत्रियों सहित संगठन के सारे नेता ऐसे आत्ममुग्ध हैं कि दलित उपद्रव हो या किसान आंदोलन, कभी कोई जनता के सामने नहीं आया।
कार्यकर्ताओं के मनोबल में कमी
2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा था। वो जोश-जुनून इस चुनाव से पहल गायब नजर आ रहा है। भाजपा के कार्यकर्ताओं के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निष्ठावान कार्यकर्ता भी नाराज हैं।
सामाजिक ताना-बाना बिगड़ा
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में जो सामाजिक ताना-बाना बुना था, किसान-कर्मचारी, दलित समुदाय के साथ जिस तरह तारतम्य बैठाया था, वह बिगड़ गया है। मंदसौर में हुए गोलीचालन के बाद से किसान वर्ग का विश्वास जीतने में भाजपा को काफी जद्दोजहद करना पड़ रही है। रिटायरमेंट की उम्र 60 से 62 करने से लेकर तमाम घोषणाओं के बावजूद कर्मचारी सड़क पर हैं। मप्र में जातिगत संघर्ष होगा, खूनखराबा होगा, ये किसी ने सोचा नहीं था। इसे रोकने में प्रशासन तो नाकाम रहा ही, राजनीतिक नेतृत्व भी असफल साबित हुआ। संघ सहित सारे अनुषांगिक संगठन दलित-आदिवासियों के बीच फैले दुष्प्रचार को नहीं रोक पाए।
मैदानी तैयारियां गायब
विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले पार्टी के जो सुर होने थे, वह नहीं दिख रहे। एक बूथ-दस यूथ जैसे नारे हवाओं में तैरते थे। पार्टी के नेता ही कह रहे हैं कि कमजोर कांग्रेस को देखकर भाजपा अति आशावाद की शिकार हो गई है या ये मान लिया है कि चुनाव जीतने के लिए शिवराज और मोदी का चेहरा ही काफी है। वहीं नेतृत्व क्षमता वाले नेताओं का मानना है कि सुगठित कार्यकर्ता ही संगठन की ताकत होते हैं। ऐसे नेताओं की मानें तो बीते तीन चुनाव की तुलना में इस बार पार्टी को ज्यादा मेहनत की जरुरत है।
क्या-क्या है चुनौतियां
- कार्यकर्ताओं के साथ सत्ता-संगठन में समन्वय का अभाव।
- कार्यकर्ताओं के मनोबल और उत्साह में कमी।
- एंटीइनकमबेंसी।
- नेतृत्व क्षमता वाले अच्छे नेता, जो कार्यकर्ताओं में जोश भर सकें।
- जनता के साथ संवाद।
- कमजोर संगठन को मजबूत करना।
- उपचुनाव के परिणामों से कांग्रेस पुनर्जीवित हुई, इसलिए मुकाबला कठिन होगा।
विषयों पर नजर रखते हैं
जिन विषयों पर आपने बातचीत की है। वह सांगठनिक और चुनाव प्रबंधन का हिस्सा हैं। मैं इस विश्लेषण से असहमत हूं। परन्तु हम अपने तरीके से इन सभी विषयों पर नजर रखते हैं और जरुरत पड़ने पर आवश्यक फैसले लेते हैं - डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे, प्रदेश प्रभारी महासचिव, भाजपा [नवदुनिया से साभार ]
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