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मैं कोलार हूँ
मैं कोलार हूँ
पंकज चतुर्वेदीमैं कोलार हूँ ,आप सब आज मुझ से भली भाति परचित है ,मेरा वर्तमान स्वरुप कब और कैसे बन गया मुझे खुद ही पता नहीं चला अस्सी से नभ्भे के दशक तक में पूर्णता ग्रामीण स्वरुप में था ,मेरी संस्कृति ,भाषा और परिवेश सब गावों जैसा ही था भोपाल से मेरा संपर्क एक टूटी फूटी कच्ची तो कही पक्की सड़क के द्वारा था ,जिस मुख्या उपयोग जलसंसाधन विभाग के कोलर डेम तक जाने में होता था ,भोपाल के जो लोग पिकनिक मानाने कोलार डेम जाते थे उनकी नजर मुझ पर पड़ी और फिर धीरे धीरे भोपाल मेरी और सरकता हुआ आने लगा ,सहकारी समितियों कि शक्ल में भूमाफिया ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी दामखेडा,बंजारी,अकबरपुर,सनखेडी,गेहुखेडा,बैरगढ चिचली ,इनायतपुर जैसे गावों ने धीरे धीरे शहरी जमा पहन लिया और शहर जैसे आचरण करे कि कोशिश भी शुरू कर दी ,भोपाल के साउथ और नोर्थ टी.टी.नगर के मध्यमवर्गीय लोगो के लिए में एक अच्छा निवेश और निवास स्थान का विकल्प बनने लगा ,पहले पहल मुझे ऐसा लगा कि शायद यह शहरीकरण मेरी सूरत बदल सकता हैं पर सच कहूँ तो में आज जितना भद्दा और बदसूरत हू वह सब इस आधे अधूरे शह रीकरण का ही नतीजा हैं शहरीकरण के इस दौर में ग्रामपंचायत के द्वारा सरपंच मेरे मालिक थे ,जिन्होंने तकनिकी ज्ञान के आभाव में मेरे छाती पर यह वह बड़ी -बड़ी इमारतें बनवा दी वैसे में इस सब के लिया तत्कालीन राज्य सरकारों और जनप्रतिनिधियों को दोषी मानता हू जो भोपाल के बगल में क्या चल रहा है इससे अपनी आंख मूंदे रहे या संभवता आँखों पर नोटों के चश्मे लगे होने के कारण अंधे हो गए थे ,पर इस सब लापरवाही कि पीड़ा और दंड आज में और मेरे सब बशिदे भुगत रहें है ,पानी ,सड़क ,बिजली ,सब कुछ अव्यवस्थित है ,मेरे आधा रूप शहर तो आधा गाँव जैसा हो गया है ,स्कूल ,कॉलेज ,अस्पताल ,पुस्तकालय ,समुदायिका भवन कहा हैं कोई नहीं जनता बस चुनावो के समय वोटो के सौदागर आज जाते और आपना मतलब निकलकर मुझे और मेरी जनता को भूल जाते हैं आज कि स्तिथि में तो मेरे यह मरने वाले को भी कफ़न -दफ़न के लिए भोपाल तक भागना पड़ता है ,इसी बीच अचानक एक नेताजी ने कोलार नगर पालिका बना दी ,और कोई उनसे यह पूछने वाला नहीं है कि आप यदि सचमुच मेरा विकास चाहते थे तो इतने वर्षो से क्या सो रहे थे ?क्या नगर पालिका मेरा विकास कर पायेगी ?वह नगर पालिका जो खुद अपनी स्थापना का व्याय नहीं उठा पा रही वो विकास क्या खाक करेगी शायद नगरनिगम में जाते तो कुछ विकास कि सम्भावनाये बन सकती थीं ,पर लोकतंत्र कि यह विडम्बना है कि लोक हमेशा ही तंत्र द्वारा चला गया है फिर में यानि कोलार इस छल तन्त्र का आपवाद कैसे हो सकता हूँ अब तो भगवान् ही मालिक है कि मेरा और मेरे लगभग दो लाख बाशिंदों का क्या होगा विकास या ?(कोलार न्यूज़)-- PANKAJ CHATURVEDICHAIRMANN.D. CENTRE FOR SOCIAL DEVELOPMENT AND RESEARCH BHOPALCELL-09425004636
Other Source 2016/05/08

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