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शहर कार्बन एमिशन करेंगे तो नेचर पाप धोने नहीं आएगा : भूपेंद्र यादव
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भोपाल । केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि हमारी पारंपरिक जीवनशैली, विशेषकर जनजातीय समाज की प्रकृति के साथ समरसता का आदर्श उदाहरण रही है। पहले विवाह जैसे अवसरों में पत्तल जैसी प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग होता था, लेकिन अब सभ्यता का स्वरूप ऐसा हो गया है कि हर जगह कचरा ही कचरा है, चाहे गांव हो, ट्राइबल या नॉन-ट्राइबल, हम सब प्लास्टिक का उपयोग करते हैं। 
 
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री यादव ने कहा कि जो समुदाय जंगलों और प्राकृतिक क्षेत्रों में रहते हैं, उनके अधिकारों की रक्षा और कैपेसिटी बिल्डिंग के लिए काम करना होगा। यह सिर्फ सरकार या एक वर्ग की जिम्मेदारी नहीं है। यदि शहर कार्बन एमिशन करेंगे, तो नेचर कोई उनके पाप धोने नहीं आएगा। सभी को मिलकर सोचना और जिम्मेदारी निभानी होगी। वे शुक्रवार को राजधानी भोपाल के नरोन्हा प्रशासन अकादमी में 'वन संरक्षण व जलवायु-समर्थ आजीविका' विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के शुभारंभ के अवसर पर बोल रहे थे। इस कार्यशाला में मध्य प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में वन पुनर्स्थापना, जलवायु परिवर्तन और समुदाय-आधारित आजीविका जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श होगा।
 
टाइगर रिजर्व-सेंचुरी बना दीं, आबादियों को हटाया, यही संकट की जड़-
कार्यक्रम में मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि हमने टाइगर रिजर्व बना दिए, सेंचुरी बना दी, अपने-अपने एरिया तय कर दिए। लेकिन जैसे ही ये एरिया तय हुए, सबसे पहले कहा गया, आबादियों को बाहर करो। यही इस पूरे संकट की जड़ है। सरकार के नाते अगर फॉरेस्ट की बात करें, तो उसकी अपनी एक सीमा और भूमिका है। लेकिन जब हम उसे आजीविका से जोड़ने की बात करते हैं, तो मामला थोड़ा उलझ जाता है। मैं खुद देखता हूं कि हमारे जनजातीय समुदाय जिन क्षेत्रों में जंगल हैं, वहां जंगल के साथ जीने की सालों पुरानी परंपरा रही है। जब हम शासन के माध्यम से इन क्षेत्रों का प्रबंधन करते हैं, तो यह विचार करना जरूरी हो जाता है कि हम उनके लिए मददगार साबित हो रहे हैं या उनके कष्ट बढ़ा रहे हैं। आज यह साफ दिखता है कि कई बार हम उनके कष्ट ही बढ़ा रहे हैं।

वनांचल में पलायन की स्थिति बनी-
कार्यक्रम में केंद्रीय राज्य मंत्री दुर्गादास उईके ने कहा आज का विषय बहुत संवेदनशील और अंतर चेतना से जुड़ा हुआ विषय है। जन्म से लेकर मृत्यु तक सालों का हमारे जीवन से वनवासी समाज से जुड़ाव और संबंध है। वनवासी समाज की जो दिक्कत है परेशानियां हैं और हमारी जो आरण्यक संस्कृति है उसके प्रति हमको बहुत गहराई से चिंतन मंथन करने की आवश्यकता है। उन्‍होंने कहा कि जनजाति क्षेत्र में वन औषधियां, इमरती लड़कियां, लेमन ग्रास, आम, जाम, इमली, सफेद मूसली समेत कई प्रकार के कंदमूल फल और अलग-अलग प्रकार के उत्पादन और भाजी मिलती है। लेकिन वर्तमान में जनजातीय क्षेत्र का दौरा करने पर पता चलाता कि अधिकांश वन औषधियां विलुप्त हो गई है। वनांचल में जो वनवासी समाज का वन आधारित जीवन था, वहां से धीरे-धीरे पलायन की स्थितियां बनी है।
 
इस कार्यशाला में विकसित भारत 2047 के लक्ष्यों में वनों की भूमिका पर मंथन होगा। कार्यक्रम में जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह, महिला बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया, खरगोन सांसद गजेंद्र सिंह पटेल भी मौजूद रहे।
Kolar News 18 April 2025

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