बेटी बचाओ अभियान
ज़िंदगी में रंग भरती हैं बेटियाँ प्रलय श्रीवास्तवलिंग अनुपात एक सामाजिक अवधारणा है। इसका मतलब केवल स्त्री-पुरुष अनुपात समझना या कहना हमारी एक बहुत बड़ी भूल हो सकती है। इस सामाजिक अवधारणा को व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझना होगा। आज स्त्रियों का अनुपात पुरुषों की संख्या में कम होना चिंतनीय विषय बन चुका है। इतिहास गवाह है कि वैदिक युग में समाज में महिलाओं का स्थान पुरुषों की बराबरी का था। कोई भी सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, रचनात्मक कार्य बगैर महिलाओं की गैर-मौजूदगी के सम्पन्न नहीं होता था। समाज में महिलाओं को मिले उच्च स्थान के फलस्वरूप ही कहा गया कि "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"। विवाह, हवन, आहुति, पूजन-पाठ, मंदिरों में प्रवेश यहाँ तक कि ऋषि-मुनियों के आश्रम में भी महिलाओं को प्रवेश की पात्रता थी। सीता, सावित्री आदि अनेक नारियाँ आज भी आदर्श नारियों के रूप में मान्य हैं।मध्यकाल में धीरे-धीरे परिस्थितियाँ बदलती गईं और समाज ने करवट ली तथा पुरुष प्रधान समाज की रचना कर डाली। मौजूदा युग में नारी इस चार-दीवारी को लाँघ कर आगे तो बढ़ी लेकिन अपने अस्तित्व के खतरे को साथ लेकर। बालिका भ्रूण हत्या जैसे घिनौने अत्याचार उस पर शुरू हो गये। परिवार में लड़की का होना अभिशाप बन गया। स्वतंत्रता के 64 वर्ष बीत चुके हैं और महिला सुरक्षा, समानता का अधिकार, घरेलू हिंसा के कानूनों के बन जाने के बाद भी नारी अपने अस्तित्व की रक्षा नहीं कर पा रही है। नारी की कोख में ही नारी का कत्ल बड़ी निर्ममता से हो रहा है, जिसके फलस्वरूप स्त्री-पुरुष अनुपात वर्ष दर वर्ष घटता जा रहा है।संतान के रूप में बेटियाँ किसी सर्द मौसम की गुनगुनी धूप के अहसास से कम नहीं होती। बेटियों से हमें मिलती है भविष्य की एक माँ, बहन, या पत्नी। एक ऐसी नारी जो परिवार, समाज व देश को सुशिक्षित, संस्कारवान और सुसंस्कृत बनाती है। हमारे देश में बेटियाँ होने का मतलब दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी भी है। ऐसे में विज्ञान के नये-नये आविष्कार उसके आस्तित्व को निरंतर बौना करते जा रहे हैं। भ्रूण लिंग परीक्षण के दौरान कोख से एक बिटिया शायद यही कहती है-"इल्जाम नहीं शिकायत है माँ जो तुमसे करनी हैमुझे जन्म नहीं देना ऐसी भी क्या मजबूरी है।कुछ महीनों में, मैं भी भरने वाली किलकारी थी,तुम सबने मिलकर मारा, मैं ऐसे न मरने वाली थी।।भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय सुनाते हुए वेदों का उदाहरण देते हुए कहा है कि किसी का जीवन लेना केवल अपराध ही नहीं अपितु पाप भी है। महान न्यायधीशों ने यह भी कहा कि (Foetus is regarded as a 'Human Life' from the movement of fertilization) गर्भाधान के समय से ही भ्रूण को एक मानव जीवन माना जाता है। महात्मा गाँधी के कथन को दोहराते हुए उन्होंने कहा- "God alone can take Life because he alone gives it" जीवन केवल भगवान ही ले सकता है। क्योंकि केवल एक वही जीवन देने वाला है। हर छोटे-बड़े प्राणी को जीने का पूर्ण अधिकार है। किसी का जीवन नष्ट करने का अधिकार किसी को भी नहीं है और न ही किसी माँ-बाप को अपनी जीती-जागती संतान की हत्या करने या करवाने की छूट विश्व के किसी धर्म ने प्रदान की है।"बेटों की चाहत में कोख में ही कत्ल कर दी जाती हैं बेटियाँयूँ जिन्दगी के सुख से महरूम कर दी जाती हैं बेटियाँ।गर्भ में लिंग की जाँच और फिर कन्या भ्रूण की हत्या के कारण दिन-प्रतिदिन कम होती स्त्रियों की संख्या से समाज में चिंताजनक स्थिति निर्मित हो चुकी है। सामाजिक परिवेश को उसकी समग्रता से देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि कन्या भ्रूण हत्या का मूल कारण कन्या के प्रति समाज की मानसिकता, सोच व दृष्टिकोण है। क्या कहना चाहिये ऐसी सोच को कि अपने घर में बेटा जन्मे और दूसरे के घर में बेटी जन्मे। बबूल बोकर आम की इच्छा रखने वालों को यह समझना चाहिये कि अगर भ्रूण हत्या होती रहेगी तो पुत्र रत्न को जन्म देने वाली माँ कहाँ से आयेगी।अब समय बदलने को तैयार हो चुका है। भ्रूण हत्या जैसे घृणित अपराध पर लगाम कसी जा रही है। बालक-बालिका के कम हो रहे अनुपात को बराबरी में लाने के लिये समाज सजग और जागरूक हो रहा है। बेटियों ने भी अपने अस्तित्व को नई पहचान दी है। वे ज्ञानरूपा, शक्तिरूपा और मातृरूपा की अवधारणा को कायम रखने में सफल होती दिख रही है। समाज भी बेटियों के महत्व को स्वीकार करता दिख रहा है।"कलियों से नाजुक होती हैं बेटियाँस्पर्श खुदरा हो तो रोती हैं बेटियाँरोशन करेगा बेटा एक ही कुल कोदो-दो कुलों की शान होती है बेटियाँ।"बेटे-बेटियों के अंतर को पाटने की दिशा में कारगर पहल करने वाला राज्य मध्यप्रदेश इस दिशा में अग्रणी बनने जा रहा है। लाड़ली लक्ष्मी, मुख्य मंत्री कन्यादान योजना, नि:शुल्क साइकिल व गणवेश, वितरण प्रतिभा किरण , गाँव की बेटी आदि अनेक योजनाओं को लागू करने वाले इस राज्य में बेटियों के पक्ष में एक और नई इच्छाशक्ति और संकल्प ने अब करवट ले ली है। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की सदैव इच्छा रही कि मध्यप्रदेश की बेटियाँ खूब पढ़ें, आगे बढ़ें। इसके लिये उन्होंने जो वातावरण निर्मित किया उसमें महिला सशक्तिकरण को एक नई दिशा मिली है। मुख्यमंत्री ने बेटियों की महत्ता को सर्वापरि मानते हुए न सिर्फ उनके कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया बल्कि उनके अस्तित्व की रक्षा के भी उपाय किये हैं। बेटियों के प्रति संवेदनशील मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की प्रेरणा और मार्गदर्शन से शुरू होने वाला बेटी बचाओ अभियान तेजी से घटते लिंगानुपात को बराबरी पर लाने की दिशा में मील का पत्थर बनने जा रहा है। बेटियों की महत्ता को कायम रखने वाले इस अभियान से निश्चित रूप से समाज प्रेरित होगा।"सूरज की रोशनी होती हैं बेटियाँचंदा की चांदनी होती हैं बेटियाँखुशबू की रूह होती हैं बेटियाँबेटे तो शादी के बादअलग घर बसा लिया करते हैंमाँ-बाप के बुढ़ापे की लाठी होती हैं बेटियाँ"बेटी बचाओ अभियान में शामिल की जायेंगी ऐसी गतिविधियाँ जो जन-मानस को सोचने एवं विचार करने पर विवर्श करेंगी कि अब उनके घर बेटियाँ ही जन्में। महिलाओं के प्रति सोच में बदलाव लाने के लिये संतान के बेटी या बेटा होने में पिता की भूमिका संबंधी तथ्य का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जायेगा। दहेज माँगने एवं देने वाले परिवारों का सामाजिक बहिष्कार, सादगीपूर्ण विवाह को बढ़ावा देना, राज्य स्तर पर पीसी एण्ड पीएनडीटी एक्ट का तथा कानून के उल्लंघन की ऑनलाइन शिकायत की सुविधा, सिर्फ बेटियों के माता-पिता के क्लबों का गठन, चिकित्सकों के संगठन का सहयोग, सोनोग्राफी केन्द्रों की मॉनीटरिंग में आई.टी. का उपयोग, धर्म-गुरुओं के प्रवचनों में बेटी के महत्व संबंधी चर्चा, मंदिरों एवं धर्मालयों में होने वाली आरती/प्रार्थना में श्रद्धालुओं को बेटियों का महत्व समझाना, प्रभावशील नाटकों की प्रस्तुति, प्रचार-प्रसार माध्यमों का उपयोग आदि अभियान की गतिविधियों में शामिल रहेगा।