भाेपाल । मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने प्रदेश की कानून और शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। उन्हाेंने गुरूवार काे बयान जारी कर कहा कि प्रदेश में शिक्षा और कानून व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त और चरमराई हुई है। स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या में चिंताजनक गिरावट दर्ज की गई है। मध्य प्रदेश की स्कूली शिक्षा के हालात इतने बदतर है कि पिछले आठ साल से स्कूलों से 22 लाख बच्चे गायब हैं, स्कूलों से रोज 1 हजार बच्चें कम हो रहे हैं। इतनी बड़ी संख्या में स्कूलों से बच्चों के गायब होने और कम होने के बावजूद भी स्कूल षिक्षा विभाग स्कूलों पर कोई उचित और दिखाई देने वाली सख्त कार्यवाही क्यों नहीं करती?
जीतू पटवारी ने प्रदेश में सरकारी शिक्षकों द्वारा बच्चों को स्कूल लाने वाले सरकारी मिशन पर सवाल उठाते हुये कहा कि जिस तरह से यह मिशन चलाया जा रहा है वह केवल कागजी ढकोसला बना हुआ है। स्कूल शिक्षा की अव्यवस्थाओं और लापरवाही के चलते कक्षा एक से पांच तक के 6 लाख 35 हजार 434 बच्चे कम हुये हैं तो कक्षा 6 से 8 तक के 4 लाख 83 हजार 171 बच्चे कम हुये हैं। इतना ही नहीं पिछले आठ साल में सरकारी स्कूलों में 12.23 लाख और निजी स्कूलों में 9.29 लाख बच्चे कम हुये हैं। यह जानकारी स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने बुधवार को विधायक प्रताप ग्रेवाल ने एक सवाल के जवाब में विधानसभा की कार्यवाही के दौरान दी है।
जीतू पटवारी ने कहा कि निजी स्कूलों में 2011 की कुल संख्या के आधार पर लगभग 20 प्रतिशत एवं सरकारी स्कूलों में 12 प्रतिशत की गिरावट आई है। जबकि बच्चों की जनसंख्या में 12 प्रतिशत (12 लाख) की वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण यह है कि सरकारी स्कूलों में लालफीताशाही और मूलभूत सुविधाओं की कमी और निजी स्कूलों में सरकार के संरक्षण में व्यापारीकरण और लूट-खसोट मची हुई है।
पीसीसी चीफ ने कहा कि मध्य प्रदेश में आबादी बढ़ी, फिर भी गिरावट क्यों? मप्र में 2011 से 2023 के बीच जनसंख्या में 1 करोड़ से अधिक की वृद्धि हुई, लेकिन स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या घटती रही? स्कूल शिक्षा मंत्री द्वारा दिये गये बचकाने बयान के तहत यह कहा जा रहा है कि जो बच्चे कम हुए हैं, उसकी वजह पढ़ाई छोड़ना है। इसके अलावा प्राइमरी यानी पहली से पांचवी कक्षा तक जो 6 लाख बच्चे कम हुए हैं, उसकी वजह 0 से 6 साल के बच्चों की कमी होना है। इसलिए स्कूलों में बच्चे कम हो रहे हैं। लेकिन हकीकत यह है कि स्कूलों की दुर्दशा और शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट के चलते बच्चों का स्कूल से मोह भंग हो रहा है। कहीं-कहीं स्कूलों का आलम यह है कि शिक्षक सोते हुये मिले हैं।
पटवारी ने कहा कि 2010-11 में सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक 105.29 लाख नामांकन थे, जो 2022-23 में घटकर 65.48 लाख रह गए और सरकारी और निजी स्कूलों में 2010-11 में कुल नामांकन 154.23 लाख था, जो 2022-23 में घटकर 108.01 लाख रह गया इस शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही दुर्भाग्यजनक स्थिति है। इतना ही नहीं बच्चों के गायब होने से बच्चों की तस्करी करने वालों के हौंसले बुलंद हो रहे हैं। जो बच्चे 48 घंटे से अधिक समय तक गायब रहते हैं वे बच्चें गायब ही हो जाते हैं और प्रदेष की कानून व्यवस्था पूरी तरह लचर और मूकदर्शक बनी हुई है। मोहन सरकार बच्चों की शिक्षा में सुधार लाने के लिए उचित कदम उठायें।