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खतरनाक साबित हो रहे हैं पिकनिक स्पॉट
खतरनाक साबित हो रहे हैं पिकनिक स्पॉट
राजधानी के आसपास के पिकनिक स्पॉट खतरनाक साबित होते जा रहे हैं यहां हुए कई हादसों के बाद भी प्रसाशन सबक ले रहा हैं न आम लोग । झीलों के इस शहर के आसपास आधा दर्जन से अधिक डैम हैं, जहां बड़ी संख्या में लोग पिकनिक मनाने जाते हैं, लेकिन व्यवस्थाओं के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है।कोलार डैम ,कलियासोत डैम और केरवा डैम अब तक सबसे ज्यादा लोगों को लील चुके हैं। शहर की झीलों और डैम में डूबने की कई घटनाएं हो चुकी हैं, इसके बाद भी न तो प्रशासन ऎसे हादसों से सबक ले रहा है और न ही लोग जागरूक हो पा रहे हैं। रविवार को शहर के पास के केरवा डेम में नहाने उतरे एक किशोर की मौत हो गई थी तथा कलियासोत के पास स्थित नहर में डूबने से एक युवक की मौत हो गई थी।इसी प्रकार जबलपुर जिले में भी सोमवार को वॉटर फॉल पर पिकनिक मनाने गए 11 लोग पानी में बह गए। लगातार बारिश के कारण जलस्त्रोतों में जलस्तर बढ़ता जा रहा है, इसके बावजूद भी लोग पिकनिक स्थलों पर सुरक्षा की अनदेखी कर रहे हैं। झील और जलाशय के आसपास फेंसिंग नहीं है, न ही यहां सख्त सुरक्षा के लिहाज से कोई गार्ड तैनात है। झीलों में नाव की व्यवस्था है, लेकिन कई डैम में नाव और गोताखोरों की भी व्यवस्था नहीं है। केरवा डैम में जरूर कुछ पैडल बोट संचालित हो रही हैं, जो अधिकांशत: अवकाश के दिनों में ही चलती हैं।राजधानी के आसपास बने डैम पर बड़ी संख्या में स्कूल और कॉलेजों के स्टूडेंट पहुंचते हैं। राजधानी से केरवा डैम की दूरी मुश्किल से 8 से 10 किमी है, इसी प्रकार कलियासोत डैम 3 से 4 किमी है। इन डैम के आसपास कई बड़े स्कू??ल और कॉलेज हैं। कई बार स्टूडेंट यहां स्कू ल के दिनों में भी पिकनिक मनाने के लिए पहुंच जाते हैं। इस बात से अभिभावक भी अंजान रहते हैं। यहां आने वाले स्टूडेंट पर नजर रखने के लिए प्रशासन का कोई अमला सक्रिय नहीं रहता है, न ही नहाने पर कोई रोक-टोक है।केरवा डैम की गहराई काफी अधिक है, डैम के ही कुछ आगे जंगल में एक झरना गिरता है। यहां काफी अधिक पानी है, बड़ी संख्या में लोग यहां पिकनिक मनाने के लिए पहुंचते हैं। झरने के नीचे पानी में कई लोग नहाते हैं, इसी प्रकार डैम में भी कई लोग नहाते हैं। चेतावनी के रूप में यहां बोर्ड भी लगा हुआ है कि यहां गहरा पानी है, नहाना मना है, लेकिन इस पर कोई रोक नहीं है।शहर में कई जगह खंतियां भी हादसों का सबब बनी हुई हैं। खंतियों में भी डूबने की कई घटनाएं हो चुकी है, लेकिन इसके बाद भी कोई इंतजाम नहीं हैं। प्रशासन से खंतियों के लिए 20 फीट गहराई की अनुमति मिलती है, लेकिन क्रशर संचालक 40 से 50 फीट गहराई तक उत्खनन करते हैं। खंतियों के आसपास न तो कहीं फेंसिंग नजर आती है और न ही कहीं चेतावनी बोर्ड लगे हुए हैं।
Other Source 2016/05/08

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