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भोपाल। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी का कहना है कि 80 लाख मीट्रिक टन के लक्ष्य की बजाय मप्र में इस बार सिर्फ 48 लाख मीट्रिक टन गेहूं की ही खरीद हो सकी है जो लक्ष्य से 40 प्रतिशत कम है। उन्होंने कहा कि वैसे तो मप्र में 15.46 लाख किसानों ने गेंहू बेंचने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन 6.13 लाख किसानों ने ही सरकारी केंद्रों पर गेहूं बेचा, ऐसा क्यों?
जीतू पटवारी ने सोमवार को अपने बयान में कहा कि यह मीडिया रिपोर्ट ऐसे समय पब्लिक डोमेन में आई है, जब केंद्रीय कृषि मंत्री भी मध्यप्रदेश में ही हैं। बीते 4 सालों में पंजाब के साथ गेहूं खरीद में टॉप 2 में रहा मप्र इस साल तीसरे स्थान पर खिसक गया है। पटवारी ने कहा कि सच्चाई यह है कि प्रदेश की भाजपा सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य 2,700 रुपए प्रति क्विंटल करने का वादा किया, तो लाखों रजिस्ट्रेशन हो गए। इतना ही नहीं भाजपा को वोट नहीं देने वाले किसानों को भी उम्मीद थी कि इस बार उनका भला होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लेकिन, 125 रुपए बोनस के साथ जब खरीदी मूल्य 2,400 रुपए प्रति क्विंटल ही रहा, तो नाराज किसान मंडियों में चले गए। किसानों ने इसे केंद्र की भाजपा सरकार की राजनीतिक धोखाधड़ी और वोट लूटने की रणनीति बताया है।
जीतू पटवारी ने कहा कि जानकारों का यह भी कहना है कि रजिस्ट्रेशन फरवरी के अंत में शुरू हुए, लेकिन बोनस की घोषणा मार्च के दूसरे हफ्ते में हुई, देरी और इस वादाखिलाफी के बाद ही नाराज किसान मंडियों का रुख करने लगे। तब विपक्ष के साथ मीडिया ने सरकार को चेताया, किंतु सरकार सोई रही। पटवारी ने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार से यह पूछा जाना चाहिए कि वह क्यों भूल गई कि खरीदी भी 20 मार्च के बाद शुरू हुई, जबकि मालवा जैसे क्षेत्र में एक हफ्ते पहले ही गेहूं की फसल बाजार में आ जाती है और मालवा मध्य प्रदेश का एक बड़ा गेहूं उत्पादक इलाका है।
पटवारी ने कहा कि गेहूं खरीद में मध्यप्रदेश के पीछे रहने के लिए केवल और केवल डॉ. मोहन यादव सरकार की नासमझी और किसानों के साथ वादा करके मुकर जाने की नीति है। किसानों की इस उपेक्षा से उनके मन में अविश्वास का भाव आया और उन्होंने सरकार की बजाय बाजार पर भरोसा कर लिया।
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