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हर साल 6 लाख में बचाई जा सकती हैं 60 जानें
maut ka talab

हर साल 60 से अधिक लोगों की डेम और तालाब में डूबने से मौत हो जाती है। इनमें से करीब 80 फीसदी लोग 15 से 35 साल तक की उम्र के होते हैं। बावजूद इसके सुरक्षा को लेकर कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। शहर के 10 से ज्यादा डेम और तालाबों में कोई गोताखोर तैनात नहीं है। जिससे चलते हादसे होते हैं। अगर निगम इन स्थानों पर गोताखोर तैनात कर दे तो कई जानें बचाई जा सकती हैं। निगम को इसके लिए महज 6 लाख रुपए सालाना ही खर्च करने पड़ेंगे। दरअसल नगर निगम गोताखोरों को 25 दिन की ड्यूटी पर रखता है। इन्हें कलेक्टर गाइड लाइन के मुताबिक कुल 5 हजार 900 रुपए प्रतिमाह मानदेय दिया जाता है। इस हिसाब से अगर सभी स्थानों पर एक-एक गोताखोर तैनात कर दिया जाए तो साल का करीब 6 लाख रुपए खर्च आएगा।

सोमवार को घोड़ापछाड़ डेम में डूबने से तीन युवकों की मौत हो गई। अब सवाल ये उठता है कि आखिर मौत क्यों हुई, साफ है अगर यहां निगम ने कोई गोताखोर तैनात कर रखा होता तो हादसा नहीं होता।

अगर हम शहर में स्थित तलाबों और डेमों पर सुरक्षा-व्यवस्था पर नजर डालें तो केवल बड़े तालाब और वीआईपी रोड पर ही गोताखोर तैनात किए गए हैं। जिससे करीब 55 फीसदी लोगों की जान बचा ली जाती है।

नगर निगम गोताखोरों को हर महीने 5 हजार 900 रुपए मानदेय देता है। वीआईपी रोड और शीतलदास की बगिया के अलावा भोपाल में केरवा, शाहपुरा लेक, कलिया सोत पर 2-2 और छोटे तालाब पर 1 गोताखोर तैनात कर दिया जाए तो कई जानें बचाई जा सकती हैं। इन पर नगर निगम को महीने में महज 50 हजार रुपए तक खर्च करने होंगे।

भोपाल में तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा छोटे बड़े डैम और तालाब हैं। जहां ज्यादातर स्थानों पर कोई गोताखोर तैनात नहीं है। इनमें केरवा डेम, कोलर डेम,छोटा तालाब, कलियासोत डेम, घोड़ापछाड़ डेम, हथाईखेड़ा डैम, बड़े तालाब का कुछ हिस्सा, भदभदा डेम, शाहपुरा तालाब और पांच नंबर तालाब शामिल है।

वर्ष 2015 और 2016 में केरवा और बड़े तालाब में डूबने से 35 लोगों की जान जा चुकी है। जबकि वीआईपी रोड पर गोताखोरों के होने के कारण तीन दर्जन से अधिक लोगों की जान बचाई गई। राजधानी में बड़े तालाब में शीतल दास की बगिया, लेकव्यू प्वाइंट और राजाभोज की प्रतिमा के पास सबसे ज्यादा लोग डूबते हैं।

पुलिस अधिकारियों का मानना है कि अगर डेम या तालाब के खतरनाक स्पॉट्स पर नगर निगम घाट बना दे तो कई हादसे रोके जा सकते हैं। घाट होने के कारण लोग उसका उपयोग करेंगे, जिससे हादसे टाले जा सकते हैं। इसके साथ ही यहां पर गहराई और चेतावनी के बोर्ड लगाकर लोगों को खतरे से आगाह किया जाना चाहिए।

भोपाल पुलिस पानी वाले दुर्घटना संभावित क्षेत्रों की सुरक्षा को लेकर नगर निगम को कई बार पत्र लिख चुकी है, लेकिन निगम ने इन इलाकों पर सूचना बोर्ड लगाने के अलावा हादसे रोकने के लिए कोई कारगर कोशिश नहीं की। एसपी नॉर्थ अरविंद सक्सेना और तत्कालीन एएसपी जोन-3 राजेश मिश्रा ने वर्ष 2013 में नगर निगम को वीआईपी रोड पर राजाभोज की मूर्ति तक रेलिंग पर जाली लगाए जाने के लिए पत्र लिखा था। नगर निगम ने पत्र का जवाब देते हुए लिखा था कि इससे वीआईपी रोड की सुदंरता खत्म हो जाएगी। इसके बाद न तो पुलिस ने और न ही प्रशासन ने ध्याान दिया।

ये हैं डेंजर जोन-शीतलदास की बगिया, कोलार डेम ,केरवा डेम, कलियासोत डेम, वीआईपी रोड, पुरानी खदानें, हथाईखेड़ा डेम और छोटा तालाब।

शासन की जिम्मेदारी

डेम या तालाब के खतरनाक स्थानों को जाली आदि से संरक्षित कर वहां गार्ड की व्यवस्था करनी चाहिए।समय-समय पर स्कूल और कॉलेज में जाकर छात्र-छात्राओं में जागरूकता लाएं।जगह-जगह साइन बोर्ड लगाए जाने चाहिए। पानी में जाते वक्त इन बातों का रखें ख्याल अगर आप को तैरना नहीं आता है, तो पानी में न उतरें। पानी की गहराई और इलाके की जानकारी नहीं होने पर तैरना आने पर भी पानी में न कूदें। किसी बड़े की निगरानी में ही ऐसे इलाकों में पिकनिक मनाने जाएं।सुरक्षा के लिए लिखी चेतावनी को गंभीरता से लें और अगर कोई साइन बोर्ड न भी हो तो भी किसी तरह की लापरवाही न बरतें। माता-पिता की भी जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को ऐसे इलाकों से दूर रहने के लिए समझाइश देते रहें।

 

Kolar News 21 June 2017

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