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देशभर अक्षय तृतीया के खास मौके पर परशुराम जयंती मनाई जा रही है.मध्य प्रदेश के हर जिले में भी भगवान विष्णु के छटवें अवतार भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। भगवान परशुराम का गहरा संबंध चंबल संभाग से होने का दावा किया जाता है। भिंड जिले के मौ कस्बे से नौ किलोमीटर दूर जमदारा गांव का नाम भगवान परशुराम के पिता जम्दगिनी ऋषि पर है। स्थानीय लोगों का मत है कि भगवान परशुराम का यही जन्म स्थली है। यहां उनकी मां रेणुका और पिता जम्दगिनी तपस्या किया करते है। गांव में एक मंदिर है जहां भगवान परशुराम की प्राचीन मूर्ति है। वहीं मंदिर के आंगन में प्राचीन शिवलिंग है। साथ ही एक जगह लंबी आकृति बनी हुई है जिसे मां के सिर काटने के दौरान जो खून जमीन पर गिरा था उसे अविशेष के तौर पर लोग बताते है।त्रेता युग से पहले का मंदिर के स्थान को होने का दावा करते है। गांव के लोगों का मत है कि भगवान परशुराम के पिता जम्दगिनी ऋषि और माता रेणुका यहां निवास करते थे। वे यहां से जंगल के रास्ते स्योड़ा में स्थित सिंध नदी के सनकुआं घाट पर स्नान करने के लिए जाया करते थे। ऐसी किविंदिति है कि एक बार मां रेणुका आते समय लेट हो गईं। जंगल में कुछ जानवर एकांत में क्रीड़ा व्यवहार कर रहे थे। ये देख मां रेणुका उनके व्यवहार की ओर आकर्षित हुई।जब वो देरी से आश्रम पहुंची तो त्रिकाल दर्शी जम्दगिनी ऋषि ने मां रेणुका के चेहरे को देख उनकी मनोदशा को समझ गए। मां रेणुका को उनके इस बरताव से दोष मुक्त करना चाहते थे। कहा जाता है कि जम्दगिनी ऋषि के पांच पुत्र थे, जिनमें सबसे छोटे पुत्र भगवान परशुराम थे। ऋषि जम्दगिनी ने अपने पांच पुत्रों को बुलाया और अपनी मां को सिर धड़ से अलग करने का आदेश सबसे बड़े पुत्र रुक्मवान को दिया, इस पर उन्होंने मां का वध करने मना कर दिया। इसी तरह से दूसरे पुत्र सुषेणु, तीसरे पुत्र वसु और चौथे पुत्र विश्वावसु ने भी कर दिया। इसके बाद पांचवें पुत्र परशुराम से कहा तो उन्होंने फरसे से मां का गला का दिया। तभी ऋषि जम्दगिनी ने चारों पुत्रों को पिता का आदेश पालन न करने पर स्मण शक्ति नष्ट होने और भगवान परशुराम को आशीर्वाद के तौर पर वरदान मांगने को कहा। इस पर परशुराम भगवान ने अपने पिता से तीन वरदान मांगे। पहला मां का सिर पुन: जुड़ जाए और मां जिंदा हो जाएं। दूसरा वरदान में सभी भाइयों की स्मरण शक्ति लौट आए। तीसरी का वरदात स्वयं के लिए अजय होने का मांगा।
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