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कर्नाटक की बसवराज बोम्मई सरकार ने राज्य में मुस्लिम OBC का 4% आरक्षण खत्म कर दिया। इस कोटे को वोक्कालिगा और लिंगायत के बीच बराबर दो-दो फीसदी बांट दिया। सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई को 25 अप्रैल तक टाल दिया।कर्नाटक सरकार की तरफ से पेश हुए SG तुषार मेहता ने जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच से फैसला टालने की मांग करते हुए कहा कि राज्य सरकार अगली तारीख तक विवादित निर्णय के आधार पर नई नियुक्तियां नहीं करेगा।इसके पहले 13 अप्रैल को भी सुप्रीम कोर्ट में इस केस की सुनवाई हुई थी। जस्टिस केएम जोसेफ की अगुआई वाली बेंच ने कहा था कि पहली नजर में कर्नाटक सरकार का फैसला सही नहीं लगता। सुप्रीम कोर्ट के सामने जो रिकॉर्ड पेश किया गया है, उससे जाहिर होता है कि फैसला गलत कॉन्सेप्ट पर आधारित है।कर्नाटक की मुस्लिम कम्युनिटी की ओर से इस केस में वकील कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे और गोपाल शंकर नारायणन पेश हुए। उन्होंने कहा कि मुस्लिम OBC का जो रिजर्वेशन खत्म किया गया है, उसका कोई ठोस आधार नहीं है। सरकार ने न कोई स्टडी कराई और न ही कोई डेटा दिया।कर्नाटक सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब के लिए समय मांगा था। मेहता ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि इस दौरान नए रिजर्वेशन कोटे के आदेश के तहत कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी।इस बीच वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों की ओर से पेश वकील मुकुल रोहतगी ने अपना जवाब दाखिल करने से पहले कोई अंतरिम आदेश पारित न करने की गुहार सुप्रीम कोर्ट से लगाई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 18 अप्रैल की तारीख तय कर दी थी।
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