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पूरे भारत में संघ के नाम से कुछ नहीं है। संघ का कुछ नहीं है। कोई प्रॉपर्टी नहीं है। सबके लिए अलग-अलग न्यास है। संघ के नाम पर कुछ नहीं है। संघ का जो कार्यालय नागपुर में है जिसे प्रधान कार्यालय कहते हैं, वह डॉ. हेडगेवार भवन भी संघ के नाम पर नहीं है। जो भी सर संघचालक होता है उसके नाम पर आ जाता है। बदलते रहता है। इसका मतलब मालकियत का भाव नहीं है। मेरी प्रॉपर्टी है ऐसा नहीं है। यह एक आत्मीयता के कारण हमसे जुड़ा है। कार्यालय बने इसके लिए कितने लोगों ने परिश्रम किया, धन दिया। अपने पन के चलते पुरुषार्थ किया, और यह कार्यालय यहां खड़ा हुआ। संघ तो पूरे समाज को अपना मानता है। श्रेष्ठ के कार्यकर्ता कहते हैं कि संघ एक दिन समाज का रूप हो जाएगा। हिन्दू समाज ही संघ बन जाएगा। हमें पूरे समाज का संगठन करना है समाज में अपना संगठन नहीं खड़ा करना है।यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बुरहानपुर के सरस्वती नगर में सोमवार को संघ के नवीन कार्यालय भवन समर्थ के लोकार्पण अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज का केंद्र है। सभी इसकी चिंता इसकी करेंगे। बार-बार भय का सामना होने से वह भय परिणाम शून्य हो जाता है। स्वयंसेवक किसी भय की प्रेरणा से काम नहीं करता। निर्भय बनो यह संघ कहता है।डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि अपनत्व के आधार पर संघ का कार्य चलता है। अपनत्व का अनुभव कार्यालय में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को होना चाहिए। कार्यालय है तो नियम, अनुशासन रहे। बंधन प्रतीत हो ऐसा नहीं होना चाहिए। संघ का काम ईश्वरी काम है, क्योंकि समाज को उन्नत करना, जोड़ना संघ का काम है। कहीं बुराई दिखे तो गुस्सा, घृणा से ज्यादा करूणा आना चाहिए। अगर हमारे बस में है तो उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए, और अगर नहीं हो सके तो उपेक्षा करना चाहिए।उन्होंने कहा कि बड़ा कार्यालय बना तो काम भी होना चाहिए। संघ कार्यालय गए तो संघ कैसा है। स्वयंसेवक कैसे होते हैं, क्या करते हैं यह पता चले। अभी संघ बड़ा हो गया है इसलिए ऐसे कार्यालय हो गए हैं। यह नहीं था तब भी संघ था। कभी-कभी साधन प्राप्त होने से सुविधा तो हो जाती है, लेकिन अगर ध्यान नहीं दिया तो क्षमता कम हो जाती है। पुराने लोग पहले पहाड़ा याद करते थे, लेकिन आज का बालक मोबाइल निकालकर देखता है। मोबाइल की आदत से सिर में हिसाब करने की क्षमता कम हो गई है। पहले जब देश में बिजली नहीं थी तो बुजुर्गों को रात में ज्यादा दिखता था। लालटेन रहती थी। आज वही लोग हैं, लेकिन बिजली की आदत हो गई है। बिना टॉर्च लिए नहीं दिखता। कार्य के लिए सुविधा का पूरा उपयोग करना चाहिए, लेकिन सुविधा के लिए अपनी क्षमता कम नहीं होना चाहिए। सुविधा हमारी मालिक नहीं होना चाहिए। आदत नहीं रही पैदल जाने की तो फिर व्यक्ति छोटे अंतर पर भी गाड़ी लेकर जाता है। इस देश को बड़ा करने की जिम्मेदारी मेरी है।
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