कोलार का अब तक का सबसे बड़ा आयोजन
कोलार के बंजारी दशहरा मैदान पर खेली गई फूलों की होली के साथ पिछले सात दिनों से चल रही श्रीमद्भागवत कथा का विश्राम हो गया। इस दौरान पिछले सात दिनों से कथा में डूब चुके भक्तों की आंखे छलक उठी। कथा विश्राम के समय पंडाल में इस क्षेत्र में रिकार्ड 1 लाख 25 हजार से अधिक श्रोता उपस्थित थे। कथा मंच से आचार्य मृदुलकृष्ण महाराज द्वारा जैसे ही ‘‘आज बिरज मे होली रे रसिया....कोई श्यामल कोई गोरी रे रसिया...’’ के साथ फूल बरसाकर फूलों की होली शुरू की वैसे ही पंडाल में मौजूद हर सवा लाख से अधिक श्रोता मारे उत्साह के उछल पड़े। कथा मंच से ‘‘कर्मश्री’’ अध्यक्ष विधायक रामेश्वर शर्मा, श्रीमती संगीता शर्मा अन्य पदाधिकारियों के साथ श्रोताओं पर फूलों की बारिश कर रहे थे तो दूसरी ओर श्रोताओं का जनसमुद्र मंच की ओर फूल बरसा रहा था। सवा लाख लोग अपने दोनो हाथ उपर उठाकर ढाई लाख हाथों से मंच की ओर फूल बरसा रहे थे, पूरा दृश्य अद्भुत था। सांतवे दिन महाराजश्री ने सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष की कथा सुनाई। कथा में दिन प्रतिदिन बढ़ रहे आनंद के चलते शुक्रवार को कथा सुनने के लिए जनसमुद्र उमड़ पड़ा था। इस दिन कथा सुनने पहुंचे सवा लाख से अधिक श्रोताओं को बैठाने के लिए आयोजकों की व्यवस्थाएं भी कम पड़ गई थी। तात्कालिक रूप से पंडाल के चारों ओर के पाल-परदे खोलकर पंडाल के बाहर तक बैठक व्यवस्था बनाई गई। पीछे की ओर श्रोताओं के देखने-सुनने में असुविधा ना हो इसके लिए पीछे की ओर बड़े-बड़े एलईडी स्क्रीन लगाए गए थे। गौरतलब है कि यहां ‘‘कर्मश्री’’ और श्री बांकेबिहारी सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित यह भागवत कथा कोलार में अब तक का सबसे बड़ा आयोजन बन गई है। इस दिन मृदुलजी ने अपने विश्वविख्यात भजनों की प्रस्तुतियां भी दी।
भागवत में हुआ है भगवान का विश्राम: आचार्य मृदुलकृष्ण महाराज
आचार्य मृदुलकृष्ण महाराज ने सांतवे दिन परीक्षित मोक्ष की कथा सुनाते हुए कहा कि यह भागवत जो हम सुन रहे हंै, भगवान का ‘शब्द ब्रम्ह’ रूप है। भगवान जब लीला रचाकर मृत्युलोक से गमन करने लगे तो ब्रम्हा जी बोले की प्रभु आप बम्हलोक में आएं, शिव जी ने कहा कि प्रभु आप शिवलोक में आएं। सारे देवता देख रहे थे कि प्रभु कहां जा रहे हैं, यहां प्रभु ने कहा कि अबकि बार ना तो मै वैकुंठ में जा रहा हूॅं ना ही क्षीरसागर में जा रहा हूॅं। भगवान कहते हैं कि अबकि बार तो मैं भागवत में विश्राम करूंगा, यह कहकर प्रभु भागवत में समाहित हो गए। कथा विश्राम की ओर बढ़ते हुए आचार्यश्री ने कहा कि कलिकला में दो काम अवश्य होने चाहिए, पहला यह कि सबसे पहले प्रातः काल उठकर भगवान का ‘‘नाम ’’ अवश्य लेना चाहिए। दूसरा काम है ‘‘प्रणाम’’ । प्रणाम करने का तरीका यह है कि जब भी प्रणाम करो तो अपने मस्तक को धरती पर टेककर गुरू चरणों में, प्रभु चरणों में प्रणाम करना चाहिए जिससे यदि विधाता ने हमारे मस्तक पर कोई उल्टी लकीरें लिख दी हैं तो गुरू और गोविंद के चरणों में माथा टेकने से वह भी सीधी हो जाती है।
जो प्रेम की डोरी में परमात्मा को बांध ले वह है ‘‘सुदामा’’
आचार्यश्री ने सप्तम दिवस की कथा में सुदामा चरित्र की कथा सुनाते हुए कहा कि जो निष्काम हो, जो प्रेम की डोरी में परमात्मा को बांध ले वह ‘सुदामा’ है। भागवत भी निष्काम भक्ति है। हमारे अंदर किसी से प्रेम करने के लिए कुछ लेने का स्वार्थ ना हो यह निष्काम भाव है। प्रेम सबके लिए होता है, सबके प्रति होता है, इसमे समता का भाव होता है। भागवत जी कहती है कि प्रेम अकारण होता है, प्रेम में यदि कोई कारण आ जाए तो वह ‘प्रेम’ प्रेम ना होकर वासना हो जाती है। भागवत जी कहती है पे्रम की जोत अगर हमारी हृदय में प्रज्जल्वित हो जाए तो कभी बुझती नहीं है, यह अखंड होती है। प्रेम कभी घटता नहीं है। प्रेम का लक्षण वृद्धि को प्राप्त होना है, जबकि वासना का लक्षण घटना है। शुकदेव जी ने पूरी भागवत में कहीं भी सुदामा जी को दरिद्र नहीं कहा है क्योंकि जिसके हृदय में भक्ति हो वह निर्धन तो हो सकता, गरीब हो सकता है लेकिन भगवान का भक्त कभी दरिद्र नहीं हो सकता।
सहयोग के पात्र हैं रामेश्वर: मृदुलजी
कथा विश्राम के पश्चात और फूलों की होली के प्रसंग के पूर्व पंडाल में उपस्थित सवा लाख से अधिक श्रोताओं के समक्ष अपने विचार प्रकट करते हुए आचार्य मृदुलकृष्ण जी महाराज ने इस विराट आयोजन के लिए ‘‘कर्मश्री’’ अध्यक्ष विधायक रामेश्वर शर्मा की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। उन्होने कहा उन्होने कहा कि ‘‘कर्मश्री’’ परिवार के सभी कार्यक्रम भोपाल में एक मिसाल कायम करते हैं, मुझे इनके कार्यक्रमों के बारे में लगातार पता चलते रहता है। मै देखता हूॅं कि राजनीतिक क्षेत्र में होने के बावजूद भी ‘‘कर्मश्री’’ अध्यक्ष रामेश्वर शर्मा की प्रभु भक्ति में कोई कमि नहीं है। वे सदैव धर्म के कामों में आगे रहते हैं, सेवा कार्य भी वे लगातार करते रहते हैं। मेरा ऐसा मानना है कि रामेश्वर शर्मा सहयोग देने के पात्र हैं इसीलिए मैं यहां से कहता हूॅं कि आप सभी ने उन्हें सहयोग देना चाहिए।
परमात्मा की खुशी के लिए हो हमारा हर कर्म
आचार्यश्री ने सप्तम दिवस की कथा सुनाते हुए कहा कि हमारा प्रत्येक कर्म परमात्मा की खुशी के लिए होना चाहिए। क्योंकि संसार में तो एक को मनाओ, दूजा रूठ जाता है। इसीलिए संसार में किस किस को मनाओगे, लेकिन भागवत कहती है कि प्रभु बांकेबिहारी को मना लो सभी सभी मन जाएंगे। संसार को रिझाना बड़ा कठिन है लेकिन भगवान को मनाना बड़ा सरल है। गोपियों ने भी कात्यायनी की पूजा कर भगवान को मांगा था क्योंकि जीव मात्र का लक्ष्य भगवान है। संसार में जिसे भी हमने अपना कहा क्या वो हमारा अपना बना । संसार को पकड़ने के लिए भागोगे तो संसार कभी पकड़ाई में आने वाला नहीं है। संसार तो सरक रहा है, लेकिन जो तुम्हारा अपना है, तुम्हारे पास है वो भगवान के अलावा कोई हो ही नहीं सकता।
कर्म का केन्द्र बिन्दु भगवान को बनाएं: मृदुलकृष्ण जी
वैष्णव सिद्धांत के अनुसार लक्ष्य, ध्येय भगवान ही होना चाहिए। रूकमणी जी ने भी अपना लक्ष्य, अपना ध्येय कृष्ण को माना था और मांगा था तो उन्हें कृष्ण की प्राप्ति हुई। हमें भागवत जी सिखाती है कि जो भी कार्य करे उसके लक्ष्य में यह रखकर को कि प्रभु मेरे हैं। यदि व्यक्ति अपने कर्म का केंद्र बिन्दु भगवान को बना ले लेता है तो प्रभु आपको गलत रास्ते पर नहीं जाने देंगे, आप गलत रास्ते पर जाएंगे तो वह आपको बांह पकड़ कर खींच लाएंगे।
दहेज लोभियों के घर में नहीं पहुंचती अच्छी कन्या
आचार्यश्री ने सप्तम दिवस की कथा सुनाते हुए कहा कि दहेज लोभियों के घर में अच्छी कन्या नहीं पहुंच पाती है। भागवत, गीता और रामायण में किसी जगह नहीं लिखा कि वर पक्ष को दहेज लेना नहीं चाहिए। माता पिता अपनी खुशी से बेटी को जो देते हैं उसमें कोई हर्ज नहीं लेकिन वर पक्ष के मन में दहेज का लोभ हो तो यह तय है कि उसके हाथ से अच्छी कन्या निकल जाएगी। इस लोभ को मन से निकाल देना चाहिए। किसी की बेटी अगर हमारे घर मंे आ रही है अर्थात साक्षात लक्ष्मी जी हमारे घर में आ रही है।
आचार्यश्री ने कथा करते हुए कहा कि नेता शब्द नेत्र शब्द से बना है। जो अच्छी निगाह से समाज को देखे कि समाज में क्या कमि है, और उस कमि को पूरी कर दे वही नेता होता है। मुझे खुशी है कि आपके विधायक रामेश्वर शर्मा समाज को अच्छी प्रकार से देख सकते हैं। कल वे मुख्यमंत्री से फोरलेन की बात कर रहे थे तो मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। नेता को यह समझना चाहिए कि जहां तक उनका क्षेत्र हैं वहां वे अपनी स्वयं की निगाह से समाज का दुख दर्द समझ सके। आज नेताओं को भागवत सुनने की आवश्यता है। रामेश्वर ने तीन बार कथा कराई तो कुछ तो प्रेरणा मिली ही होगी। आचार्यश्री ने इस बारे में कथा पंडाल में बैठे आयोजन समिति के संयोजक विधायक रामेश्वर शर्मा को पूछा तो उन्होने प्रेरणा की बाबत स्वीकृति भरी। प्रतिउत्तर में पूरा कथा पंडाल करतल ध्वनी से गूंज उठा।
पुण्य कर्मो का बल हमें तीर्थ, कथा में ले जाता है
आचार्यश्री ने कहा कि तीर्थ में, कथा में, धाम में हमें अगर कोई ला रहा है तो वह बलराम जी की कृपा से संभव होता है। आप पवित्र स्थान पर जा रहें हैं तो इसका मतलब है कि एक बल आपको वहां ले जा रहा है, वह बल पुण्य कर्मो का, सद्कर्मों का बल होता है। आप भी जो यहां भागवत सुनने के लिए आएं हैं आपको श्रेष्ठ कर्म ही यहां लेकर आए हैं। कितने ही लोग मंदिर के सामने, गंगा जी के सामने रहते हें लेकिन वह दर्शन और डुबकी रोज नहीं लगा पाते और कल-कल करते रहते हैं। कल कभी आता नहीं है, क्योंकि कल नाम काल का है। भागवत जी का आदेश है कि मन में कोई अच्छा विचार, अच्छा कर्म आए तो कल पर छोड़ने के बजाए आज ही कर लेना चाहिए।
सुदामा-सुशिला से भाव रखें पति-पत्नि
आचार्यश्री ने कथा में सुदामा-कृष्ण मिलन का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि कृष्ण ने सुदामा जी से उनकी पत्नि का हाल पूछा था, जिस पर सुदामा जी ने कहा था कि मेरी पत्नि का नाम सुशीला है, उसका जैसा नाम है वैसी सुशील है। आज पति-पत्नि के बीच का प्रेम बड़ा विचित्र हो गया है। आज का दाम्पत्य इस प्रकार का है कि एक सप्ताह में ही प्रेम से विवाह तक पहुंचकर फिर शक तक बात पहुंच जाती है। पति-पत्नि का संबंध बहुत गहरा भी है और बहुत नाजुक भी है। आजके पति-पत्नि को इन कथाओं से कुछ सीखना चाहिए हमें यह कथाएं कुछ सीखाती है।
लाखों युवाओं को कथा में देख मैं अभीभूत हूॅं: रामेश्वर शर्मा
कथा विश्राम के बाद फूलों की होली के पूर्व उपस्थित जनसमुद्र को संबोधित करते हुए आयोजन समिति के प्रमुख विधायक रामेश्वर शर्मा ने कहा कि यहां भागवत कथा के सात दिनों में लाखों की संख्या में बेटा-बेटियों ने कथा सुनी है। आज भी हजारों युवा यहां मौजूद हैं, मैं इन्हें कथा में देख के अभीभूत हूॅं। यह इस बात की ओर संकेत करते हैं कि दुनिया वाले कुछ भी कहते रहे लेकिन हकीकत यह है कि भारत के बेटा बेटी की आज भी रूचि धर्म और भगवान में है। कोई इन्हें लाए या नहीं लाए लेकिन ये बेटा बेटी कथा में स्वयं आ जाते हैं यह इनका भाव है। पहले भारत की राजनीति धर्म के आधार पर चलती। भगवान के युग में भी राजनीति थी, जो कि धर्म आधारित थी। भारत की राजनीति में आज यह संकल्प होना चाहिए कि भारत भूमि पर, गौमाता पर, बेटियों पर हमला करने वालों को किसी कीमत पर छोड़ा नहीं जाएगा। जिस दिन भारत की राजनीति फिर से फिर से धर्म पर खड़ी होगी उस दिन भारत मंे रामराज आएगा, कृष्णराज आएगा। ‘‘कर्मश्री’’ ने यह अभियान चलाया है कि हम अपना नया वर्ष गुड़ीपड़वा को मनाएं । 31 दिसम्बर की रात 1 जनवरी में प्रवेश के अवसर पर मदिरा पान होता है, जिसमें दुर्घटनाएं भी होती है, यह हमारा नया साल नहीं है। नया साल तो गुड़ी पड़वा पर आएगा जब सब देवी पर जल चढ़ाने जाएंगे। श्री शर्मा ने कहा आचार्यश्री की ओर मुखातिब होते हुए कहा कि महाराज जी आपने जो धर्ममार्ग पर चलने की मुझे जो शिक्षा दी है मैं उस पर चलने की कोशिश करता हूॅं । पूरा प्रयास करता हूॅं कि जनता की सेवा कर सकूं। जनता को अपना माई-बाप मानता हूॅं, इनके दुख दूर करने की पूरी कोशिश सदैव करता रहूॅंगा। मैं अपनी जनता को बिजली, पानी, सड़क तो दे सकता हूॅं लेकिन बेटा-बेटियों को संस्कार देने की जिम्मेदार हर माॅं-बाप की है। विधायक श्री शर्मा ने इस अवसर पर उपस्थित जनसमुदाय को हाथ खड़े करवाकर संकल्प दिलवाया कि ‘‘सब संकल्प लो कि अपने बेटा-बेटी को संस्कार अवश्य देंगे।’’