कोलार में श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंद्ध में उल्लेख है कि भगवान अपने भक्त के लिए अपना हृदय भी खोल देते है। जब भक्त प्रभु के चरणों का आश्रय ले लेता है तब भगवान अपने भक्त के लिए के केवल अपनी आंॅख, वाणी, कान ही नहीं खोलते अपितु उसके लिए अपना हृदय भी खोल देते हैं। हनुमान चालिसा में लिखा है कि जो भगवान के चरित्र को वर्णन करता है भगवान उसके हृदय के भी रसिया हो जाते हैं। भक्ति हमें प्रभु के शरणागत होना सिखाती है। वृंदावन की भूमि भक्ति प्रधान है, मथुरा की भूमि ज्ञान प्रधान है, द्वारिका की भूमि एश्वर्य प्रधान है। यह सद्विचार आचार्य मृदुलकृष्ण महाराज बंजारी दशहरा मैदान में कर्मश्री संयोजक विधायक रामेश्वर शर्मा और श्री बांकेबिहारी सेवा समिति के संयुक्त संयोजन मेें आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में पांचवे दिन की कथा सुनाते हुए व्यक्त किए। इस दिन की कथा में उन्होने श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का सुंदर चित्रण किया और माखनचोरी, गौचारणलीला, कालिया मर्दन, गिरीराज पूजन की कथा सुनाई। आचार्यश्री भक्ति की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि जिस प्रकार से भक्त के हृदय में भगवान का दर्शन होता है उसी प्रकार से भगवान के हृदय में भी भक्त के दर्शन होते है। मृदुलजी द्वारा इस दिन श्रीकृष्ण की बाललीलाओं के वर्णन के साथ जब बालगोपाल की सखाओं संग माखनचोरी की झांकी प्रस्तुत की तो हर सख्श इस अलौकिक लीला में शामिल होकर भावविभोर हो गया। मारे खुशी के श्रोताओं के अश्रु छलक पड़े। गौरतलब है कि पांचवे दिन 70 हजार से अधिक श्रोताओं ने कथा पंडाल में बैठकर कथा सुनी।
भगवान को लगा छप्पन भोग
‘‘मेरो गोवर्धन महाराज...महाराज, तेरो माथो मुकुट विराज रह्यो...’’ की स्वरलहरियों के साथ कथा मंच पर भगवान को 56 भोग लगाया गया। आचार्यश्री ने भजन और मंत्रोच्चारण के साथ विधिवत रूप से बांकेबिहारी को 56 भोग लगवाया। आयोजन समिति के संयोजक विधायक रामेश्वर शर्मा ने सपत्निक भगवान को 56 भोग समर्पित किया। इस अवसर पर गुफा मंदिर के महंत चंद्रमादास त्यागी, डीआईजी रमनसिंह सिकरवार, यजमान अशोक चतुर्वेदी ने सपत्निक, अग्रवाल ग्रुप के चेयरमेन सुधीर अग्रवाल, मध्यप्रदेश मेेट्रो के ईएनसी जितेन्द्र दुबे, अविनाश शर्मा सहित अन्य जनप्रतिनिधियों-अधिकारियों ने पूजन अर्चन के साथ भगवान को 56 भोग समर्पित कराया और संध्या आरती में भाग लिया।
मनमोहक झांकियों पर मंत्रमुग्ध हुए श्रोता
कथा के दौरान श्रीकृष्ण की बाललीलाओं के एक से बढ़कर एक मनमोहक झांकियां प्रस्तुत की गई। माखनचोरी की झांकी, नटखट ग्वालों संग झांकी सहित 56 भोग की झांकी प्रस्तुत की गई। झांकियों का प्रस्तुतिकरण ऐसा जीवंत था कि कथा पंडाल में बैठे 70 हजार श्रोता मंत्रमुग्ध होकर भक्ति की मस्ती में भावविभोर हो गए। अद्भुझ झांकियों पर अलौकिक आनंद का अनुभव करते भक्तों के अश्रु छलक उठे।
छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल पर झूमा भोपाल
कथा के साथ-साथ अपने समधुर भजनों के लिए विश्वविख्यात आचार्य मृदुलकृष्ण महाराज द्वारा बुधवार को कथा के दौरान अपने विश्वविख्यात भजन ‘‘छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल..’’ प्रस्तुत किया तो सारा कथा पंडाल भक्ति की मस्ती में चूर होकर झूमने लगा। इस समय कथा पंडाल में बैठे 70 हजार श्रोताओं के 1 लाख 40 हजार कदमों में कोई एक ऐसा नहीं था जो भक्ति की मस्ती में थिरक नहीं रहा हो। कथा संयोजक विधायक रामेश्वर शर्मा, उनकी पत्नि श्रीमती संगीता शर्मा सहित कथा पंडाल में मौजूद क्या बड़ा, क्या छोटा सभी आचार्यश्री की स्वरलहरियों में थिरक रहे थे। इस समय भक्ति के आनंद का हर्षातिरेक था। इस दिन मृदुलजी ने ‘‘मेरो गोवर्धन महाराज...महाराज, तेरो माथो मुकुट विराज रह्यो...’’, ‘‘आज मेरो अंगना में आओ नंदलाल....आओ गोपाल.’’, ‘‘मैं दीवाना हूॅं तेरा गुलाम...मेरे प्यारे घनश्याम...’’, जैसे प्रख्याम भजनों की प्रस्तुतियां दी।
प्रतिदिन गाएं ‘‘नंद के आंनद भयो...जय कन्हैयालाल की
आचार्यश्री ने भागवत में नंदोत्सव की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि भागवत में शुकदेवजी यह नहीं कहते हैं कि नंद के घर कृष्ण हुए है या कृष्ण का जन्म हुआ है, अपितु यह कहते हैं कि ‘‘नंद के आंनद भयो...जय कन्हैया लाल की...हाथी दीन्हे, घोड़ा दीन्हें और दीन्हीं पालकी...जय कन्हैया लाल की।’’ यह कीर्तन जो प्रतिदिन दो मिनट के लिए ही सही अपने घर में प्रभु के सामने गाता है उसके घर में आनंद ही आनंद रहता है।
भगवान के भोगों को सांसारिक भोगों से उपर रखें
आचार्यश्री ने सप्तासुर वध का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान के भोगों को उपर रखिए और सांसारिक भोगों को नीचे रखिए। जो भगवान को नीचे रखकर सांसारिक भोगों को उपर रखता है, ऐसा अंहकार हो जाता है भगवान उसकी गृहस्थ रूपी बैलगाड़ी को नष्ट कर देते हैं। हमारी गृहस्थ रूपी गाड़ी तब ही चलेगी जबकि पुरूषार्थ करते हुए अहंकार से ना जुड़ते हुए भगवान की प्रार्थना से जुड़ जाए तो भगवान उसकी गृहस्थ रूपी गाड़ी को पार लगा देते हैं।
मृदुलजी ने की ‘‘नर्मदा सेवा यात्रा’’ की प्रशंसा
मृदुलजी ने कालिया मर्दन की कथा सुनाते हुए कहा कि आचार्यश्री ने कहा कि मुझे पता चला है कि मध्यप्रदेश में नर्मदा मैया को प्रदूषण मुक्त करने का कार्य सरकार के द्वारा चल रहा है, मंै एसे कार्य की प्रशंसा करता हूॅं। उन्होने उल्लेख किया कि भगवान कहते हैं कि तुम्हारी पूजा का फल तभी है जब गंगा-यमुना और नर्मदा का जल प्रदूषण रहित बना रहे। उन्होने कहा कि मैं अपनी हर कथा में कहता है कि सरकारें तो यह कार्य करती रहती है लेकिन यदि हम भक्त हैं तो हमें अपनी ओर से भी पवित्र गंगा, यमुना, नर्मदा मेें पवित्रता और स्वच्छता बनी रही इसके लिए प्रयास करना चाहिए। हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि जब भी हम इन पवित्र नदियों में स्नान करेंगे तो साबुन नहीं लगाएंगे और इन्हें प्रदूषण मुक्त बनाएंगे। जब समाज व्यक्ति रूप से संकल्प लेता है तो क्रांती आ जाती है। इसीलिए हमें यह संकल्प लेना होगा। कालियामर्दन की कथा सुनाते हुए आचार्यश्री ने कथा पंडाल में उपस्थित 70 हजार श्रोताओं से हाथ उठवाकर संकल्प दिलवाया कि आगे से कभी भी पवित्र नदियों को प्रदूषित नहीं करेंगे।
हमारे सुख-दुख के कारण हमारे कर्म हैं
आचार्यश्री मृदुलकृष्णजी ने कथा के पांचवे दिन गोवर्धन पूजा के प्रसंग का सुंदर चित्रण किया। यह प्रसंग सुनाते हुए आचार्यश्री ने कहा कि भगवान ने 7 वर्ष की आयु में ही अपने पिता को बड़ा उपदेश किया था। भगवान ने कहा कि हमारे सुख और दुख का मूल कारण यह इंद्र नहीं है अपितु हमारा कर्म है। हम अच्छा कर्म करेंगे तो हमें सुफल मिलेगा और यदि खराब कर्म करेंगे तो इसका फल भुगतने के लिए भी तैयार रहना होगा।
इंद्रियों को भगवान के भजन में लगाएं तो भी लग जाएगा 56 भोग
आचार्यश्री ने कथा में छप्पन भोग की कथा सुनाते हुए कहा कि अगर आप यहां अपनी ओर से 56 लगाने से वंचित हो गए है तो चिंता नहीं करना। एक 56 भोग यह भी है जो मंच पर भगवान के समक्ष लगा है। दूसरा एक और आप को बताता हूॅं, आप जोड़े 5 और 6 मिलकर होता है 11 अर्थात हम हमारी 11 इंद्रियों को भगवान के भजन मेें लगा देंगे तो भगवान को 56 भोग लग जाएगा।
भगवान को एकनिष्ठ भाव से भजना चाहिए
आचार्यश्री मृदुलकृष्णजी महाराज ने पांचवे दिन की कथा में श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का वर्णन करते हुएएक सच्ची घटना का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान के प्रति एक बार हमारे मन में जो भाव आ जाए उसे निरंतर भजना चाहिए, बार बार भाव बदलना नहीं चाहिए। भगवान कहते हैं कि एकनिष्ठ भाव से मुझे भजों तो मैं सदैव तुम पर अपनी कृपा बनाए रखूंगा।
किसी भी काम के पूर्व तीन बार जरूर सोचें
कोई भी काम करने के पूर्व तीन बार जरूर सोचना चाहिए क्योंकि हमारी बुद्धि तीन प्रकार की होती है। तमोगुणी, रजोगुणी, सतोगुणी। तमोगुणी वृत्ति में होने पर व्यक्ति में हिंसात्मक विचार रहते हैं, रजोगुणी वृत्ति मेें होने पर व्यक्ति बंदर के जैसी चंचल वृत्ति में आ जाता है, तीसरी सतोगुणी वृत्ति में बुद्धि में सात्विकता आ जाती है उस समय व्यक्ति गऊ माता के स्वरूप में आ जाता है। इसीलिए हम जय-जय श्री राधे तीन बार कहते है। पहली दो बार राधा रानी हमारी ओर देखे ना देखे लेकिन तीसरी बार जब हम सात्विकता में होते हैं तो उन्हें हमारी ओर देखना ही पड़ता है। इसीलिए किसी कर्म के पूर्व विचार पूर्वक कर्म करने को कहा गया है, ऐसा कर्म श्रेष्ठ होता है।