बाबा वासुदेव और यशोदा के यहां कन्हैया की किलकारी गूंजी। भाव विभोर हुई गोपियों ने मंगलगीतों के साथ ही नृत्य शुरू कर दिया। पुष्पवर्षा, नंदलाला के जयकारो के बीच जैसे ही मुक्त कंठ से आचार्य मृदुल कृष्ण ने बृज में हो रही जय-जयकार, नंद घर लाला आयो है..... और नंद के आनंद भयो...जय कन्हैया लाल की....जैसे भजन प्रस्तुत किए तो बंजारी मैदान में सजा कथा पंडाल जैसे बृजधाम हो गया। नटवर की लीला के वशीभूत होकर वहां मौजूद हजारों श्रद्धालुओं ने थिरकना शुरू कर दिया।
श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन मंगलवार को आचार्यश्री ने बालकृष्ण केजन्म की अलौकिक कथा का सजीव वर्णन किया। मंच पर बांके बिहारी की मोहक झांकियों के बीच मृदुलजी की वाणी ने जैसे लोगों को सम्मोहित कर दिया। बालगोपाल के जन्म की बधाई स्वरूप प्रसाद, टॉफी और खेल-खिलानों की बौछार भक्तों पर की गई। मृदुलजी ने कथा के तहत वामन अवतार, नृसिंह अवतार, श्रीराम अवतार, और बालगोपाल के जन्म के प्रसंगों का अद्भुत विवरण दिया।
हर इंसान में कोई ना कोई दोष होता ही है, कोई यह कहे कि मैं निर्दोष कहे तो यह मुमकिन नहीं है। इस संसार में निर्दोष अगर कोई है तो केवल परमात्मा है। हमारा कर्म बंधन ही स्वर्ग का द्वार खोलता है।
आचार्यश्री ने कहा कि चमत्कार दो प्रकार के होते हैं, एक भौतिक जगत में विज्ञान का चमत्कार होता है। दूसरा भगवान के द्वारा चमत्कार होता है। जब भक्त बालक ध्रुव को पांच वर्ष की अवस्था में भगवान के दर्शन हुए थे। भागवत में शुकदेव जी ने कहा है कि भक्त ध्रुव की भक्ति से प्रसन्ना होकर, भगवान भक्त ध्रुव को दर्शन देने नहीं आए थे अपितु वे भक्त ध्रुव का दर्शन करने आए थे। यह अलौकिक चमत्कार था।
जो मांगता नहीं प्रभु उसे सब कुछ दे देते हैं
भागवतजी में लिखा है जो भगवान से मांगता है भगवान उसको देते हैं, लेकिन जो भगवान से कुछ नहीं मांगता, भगवान उसे सब कुछ दे देते हैं। ध्रुव जी ने भगवान से कुछ नहीं मांगा था, उन्होने भगवान से कहा था कि प्रभु मुझे कुछ नहीं चाहिए लेकिन भगवान ने उन्हें बिन मांगे 36 हजार वर्षों के लिए राजसत्ता दे दी थी।
जो स्वर्ग में भी नहीं,वह सुख भारत में मिलते हैं
उन्होंने जड़भरत चरित्र के बारे में तीन भरत हुए हैं, एक शकुंतला पुत्र, दूसरे श्रीराम के भाई और तीसरे भरत जड़ भरत हैं। जड़ भरत के नाम से हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा है। जो सुख हमें स्वर्ग में भी प्राप्त नहीं है, वह सुख हमें भारतवर्ष में प्राप्त है। भगवान की कथा, महापुरूषों का दर्शन और यज्ञ दर्शन यह तीनों सुख स्वर्ग में प्राप्त नहीं होते यह सुख केवल धरती पर भारत वर्ष में ही प्राप्त होते हैं। इन्हें पाने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं।
पुरूषार्थ का फल कभी कड़वा नहीं होता है। पुरूषार्थ करते हुए धैर्य बनाए रखना चाहिए। कभी कभी पुरूषार्थ करते करते धैर्य जवाब देने लगता है तब समझ लेना चाहिए कि अब काम बनने ही वाला है। समुद्र मंथन के समय देवताओं और दैत्यों दोनों ने ही पुरूषार्थ किया था। लेकिन इस समय देवताओं ने धैर्य रखा तो उन्हें अमृत मिला जबकि दैत्यों ने धैर्य छोड़ दिया तो वह अमृत से वंचित हो गए थे। इस दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की पत्नी साधना सिंह, वित्त मंत्री जयंत मलैया, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर, कथा संयोजक विधायक रामेश्वर शर्मा एवं उनकी धर्मपत्नि संगीता शर्मा, किरण संजर, मुख्य यजमान अशोक चतुर्वेदी उनकी पत्नि कमलेश चतुर्वेदी मौजूद थे। कथा के बीच-बीच में मृदुलजी ने जब अपने प्रसिद्घ भजन लागी तुम संग यारी....मेरे बांकेबिहारी..., मोहन से दिल क्यूं लगाया है...ये मैं जानू या तू जाने..., तेरी बन जाएगी...गोविंद गुण गाने से... और मुझ दे दो भजन वाली वो माला.... भी प्रस्तुत किए।