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काम-क्रोध-लोभ तीनों हैं ‘प्रबल शत्रु : मृदुलजी
kolar bhagvat katha
 
50 हजार श्रोताओं ने सुनी कथा,धर्म के साथ राष्ट्रभक्ति का रंग 
 
हमारे तीन प्रबल शत्रु हैं , काम,क्रोध और लोभ। पहला शत्रु ‘काम’ अर्थात वासना है, इस पर नियंत्रण के लिए हमें प्रभु की शरण में रहना चाहिए।  दूसरा शत्रु हैं ’क्रोध’, यह एक मानसिक विकार है जिसके नियंत्रण ​​करने के लिए भगवान का नामजप करना चाहिए। क्रोध को जन्म देती है ‘‘कामनाएं’’ । क्रोध के लिए स्थान का भी बड़ा महत्व होता है। घर के ‘‘आग्नेय कोण’’ में बैठकर जब भी बातचीत होगी तो यह सत्य मानना कि झगड़ा जरूर होगा, वहां किसी ना किसी को क्रोध अवश्य आएगा। जब गुस्सा आए तो गुस्से को नियंत्रित करने के लिए घर में भगवान के श्रीविग्रह के सामने जाकर खड़े हो जाना आपका गुस्सा शांत हो जाएगा, इस उपाय के बारे में श्रीमद्भागवत में स्वयं गोपियों ने वर्णन किया है। तीसरा शत्रु हमारा ‘‘लोभ’’ है । ‘‘लोभ’’ बड़ा प्रबल होता है, यह शत्रु जल्दी समाप्त नहीं होता है। इन्हें मारने के लिए भगवान को भी दो अवतार ‘‘वराह अवतार’’ और ‘‘नृसिंह-अवतार’’ लेने पड़े थे। यह सद्विचार आचार्यश्री मृदुलकृष्णजी महाराज ने  बंजारी दशहरा मैदान पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में तृतीय दिवस की कथा करते हुए व्यक्त किए। इस दिन आचार्यश्री ने कपिल अवतार, कपिल-देवदूती संवाद, सति चरित्र और धु्रव चरित्र की कथा का वर्णन किया। ‘‘कर्मश्री’’-श्री बांकेबिहारी सेवा समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कथा के तीसरे दिन लगभग 50 हजार से अधिक श्रोताओं ने कथा पंडाल में बैठकर भागवत कथा सुनी। इस दिन आचार्य मृदुलकृष्ण ने अपने ‘‘कर दो-कर दो बेड़ा पार...राधे अलबेली सरकार...’’ ‘‘दो गज कफन का टुकड़ा...तेरा लिबास होगा...’’, ‘‘बन गई..बन गई...बन गई, बिहारी जी मैं बन गई तुम्हारी’’ और ‘‘ मेरा छोटा सा संसार...हरी आ जाओ एक बार...’’ जैसे सुप्रसिद्ध भजनों की प्रस्तुती देकर श्रोताओं को झूमने के लिए मजबूर कर दिया। 
धर्म के साथ राष्ट्रभक्ति का रंग भी सजा
बंजारी दशहरा मैदान पर स्थित कथा पंडाल में धर्म के साथ राष्ट्रभक्ति का रंग भी सजा। कथा विश्राम के बाद समूचे पंडाल में उपस्थित 50 हजार लोगों ने एक साथ खड़े होकर सामूहिक राष्ट्रगान किया। कथा विश्राम के बाद हुए राष्ट्रगान में व्यासपीठ से उतर स्वयं आचार्य मृदुलकृष्ण जी महाराज और आयोजन समिति के अध्यक्ष-विधायक रामेश्वर शर्मा एवं श्रीमती संगीता शर्मा, मुख्य यजमान अशोक चतुर्वेदी एवं श्रीमती चतुर्वेदी, आचार्यश्री के साथ आई सभी संत मंडली ने सामूहिक राष्ट्रगान में भाग लिया। सहित इस समय वहां मौजूद समस्त जनप्रतिनिधि मंच पर खड़े होकर शामिल हुए। मंच के नीचे कथा पंडाल में खड़े हजारों श्रद्धालु हाथ मे तिरंगा लिए खड़े थे। सभी ने सामूहिक रूप से राष्ट्रगान किया और वीर सैनिकों को याद किया और बांकेबिहारी से भारतीय सैनिकों को शक्ति देने की प्रार्थना भी की। गौरतलब है कि कथा के दौरान ही व्यासपीठ से स्वयं आचार्यश्री ने उपस्थित श्रोताओं का आहवान करते हुए कथा विश्राम के पश्चात होने वाले राष्ट्रगान में शामिल होने का आहवान किया। राष्ट्रगान के पूर्व उपस्थित जनसमुदाय को संबोेिधत करते हुए आयोजन समिति के प्रमुख-विधायक रामेश्वर शर्मा ने कहा कि हम यहां भगवान के दरबार में राष्ट्रगान करके कामना करेंगे कि प्रभु हमारे राष्ट्र और सैनिकों को शक्ति दे। हम यहां से विश्वास दिलाएं कि देश का बच्चा-बच्चा अपने सैनिकों के साथ खड़ा है। हम अपनी सैनिकों की शत्रु पर विजय के लिए भी कामना करते हैं।
डीजीपी भी पहुंचे कथा सुनने
मध्यप्रदेश पुलिस के मुखिया पुलिस महानिदेशक ऋषिकुमार शुक्ल सोमवार अपरान्ह श्रीमद्भागवत कथा सुनने पहुंचे। उन्होने कथा के संयोजक-विधायक रामेश्वर शर्मा के साथ पंडाल में बैठकर आचार्य श्री मृदुलकृष्ण जी महाराज के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत कथा सुनी। इस दिन एडीशनल एसपी राजेश चंदेल, समीर यादव सहित अन्य जनप्रतिनिधी-अधिकारियों ने भी कथा पंडाल में बैठकर कथा सुनी।
भक्त ध्रुव-भगवान विष्णु की झांकी प्रस्तुत, हर्षित हुए श्रद्धालु
कथा के दौरान कथा मंच पर भक्त ध्रुव और भगवान विष्णु की मनमोहक झांकी प्रस्तुत की गई। कथा में ध्रुव चरित्र के वर्णन के दौरान जैसे ही भक्त ध्रुव-भगवान विष्णु की झांकी मंच पर प्रस्तुत हुई, मारे हर्ष के सारे श्रोता जय-जयकार करने लगे। झांकी के दर्शन कर श्रोताओं का रोम-रोम पुलकित हो गया। आयोजन समिति के प्रमुख-विधायक रामेश्वर शर्मा, उनकी धर्मपत्नि श्रीमती संगीता शर्मा, मुख्य यजमान अशोक चतुर्वेदी उनकी धर्मपत्नि श्रीमती कमलेश चतुर्वेदी ने उक्त झांकी का पूजन किया। 
‘‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’’ मंत्र का एक-एक अक्षर भगवान का अंग
कथा में नारदजी और भक्त ध्रुव के मध्य संवाद का उल्लेख करते हुए मृदुलजी ने कहा कि नारदजी ने भक्त ध्रुव को भगवान की प्राप्ति के लिए मंत्र दिया था ‘‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’’ । इस मंत्र का महत्व बताते हुए मृदुलजी ने कहा कि द्वादशाक्षर मंत्र का एक-एक अक्षर भगवान कृष्ण का एक-एक अंग है। नारद जी ने पांच वर्ष के बालक को यह द्वादशाक्षर मंत्र देकर सीधा वृंदावन की ओर भेजा था। यह मंत्र लेकर ध्रुवजी वृंदावन में यमुनाजी के तट जाते हैं, और सबसे पहले यमुना जी में स्नान कर अपने गुरूदेव जी के बताए हुए नियम पालन कर पांच महिने तक कठोर तप भगवान के दर्शन प्राप्त करते हैं। 
‘‘गुरू’’ परमात्मा का सच्चा प्रतिनिधि
कथा सुनाते हुए मृदुलजी ने कहा कि ब्रम्हा की पदवी को भी कोई प्राप्त कर ले, शिव की पदवी को भी प्राप्त कर ले लेकिन बिना गुरू के गति नहीं है। श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि श्रीकृष्ण जगद्गुरू है लेकिन जीवन में-संसार में जो गुरू हमें मिलते हैं वह परमात्मा के सच्चे प्रतिनिधि होते हैं। श्रीमद्भागवत कहती है कि हमारे जीवन के मल्लाह, जीवन के नाविक ‘‘गुरू’’ है। इसीलिए गुरू को ब्रम्हा, विष्णु और महेश के तुल्य माना गया है। सद्गुरू की जब कृपा हो जाए तो हमें दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है। 
पंचशुद्धियां जिसमें हो, सद्गुरू की कृपा प्राप्त करता है 
श्रीमद्भागवत में राजा परीक्षित और शुकदेव जी मध्य संवाद का वर्णन करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि परीक्षित के अंदर पंच शुद्धियां है, मातृ-शुद्धि, पितृ-शुद्धि, वंश-शुद्धि, दृव्य-शुद्धि  और आत्म-शुद्धि है। जिसके जीवन में पांच शुद्धियां हो जाती है उस पर सद्गुरू की कृपा हो जाती है। इन्हीं शुद्धियों की वजह से परीक्षित, शुकदेव जी से प्रश्न कर पाते हैं। जब परीक्षित महाराज ने सद्गुरू शुकदेव जी से पूछा की मरने वाले व्यक्ति को क्या करना चाहिए तो शुकदेव जी ने परीक्षित से ही पूछा कि तुम बताओ कि अभी तक तुमने क्या किया है ? हे राजन सोचो कब तुम बच्चे थे, फिर युवा हुए और वृद्ध हो गए। जीवन हर पल बदल रहा है। जिस तरह से गंगा की धार प्रतिपल बदलती रहती है वैसे ही श्वांस लेने वाला व्यक्ति तो वही होता लेकिन प्रतिपल श्वासं बदलते जाती है। 
Kolar News 20 December 2016

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