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ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ईआरसीपी) पर राजस्थान की मनमर्जी चली तो आने वाले कुछ सालों में मप्र-राजस्थान और मप्र-उप्र की सीमा पर चंबल नदी पूरी तरह सूखने के कगार पर पहुंच जाएगी। इतना ही नहीं चीता प्रोजेक्ट की लाइफ लाइन कूनो नदी के साथ-साथ क्यूल, कालीसिंध और पार्वती नदियों का अस्तित्व लगभग खत्म हो जाएगा। इससे न केवल ग्वालियर-चंबल में सूखे के हालात पैदा हो जाएंगे, बल्कि मप्र के किसानों और मुरैना व ग्वालियर शहर के लिए चंबल से जलापूर्ति की प्रस्तावित महत्वाकांक्षी परियोजना भी खतरे में पड़ जाएगीजल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट का कहना है कि मप्र ईआरसीपी परियोजना के विरोध में बिल्कुल भी नहीं हैं, लेकिन अपने राज्य के किसानों के हक पर डाका डालने की छूट किसी को नहीं दे सकते हैं। राजस्थान को अंतरराज्यीय जल बंटवारे के नियमों के हिसाब से अपने इलाके में बांध और बैराज बनाने चाहिए। राजस्थान जिस तरह मनमाने ढंग से मप्र से निकलने वाली नदियों का पानी डायवर्ट कर रहा है, यह मप्र के हितों और हमारे किसानों का हक छीनने की साजिश है। इससे चंबल नदी के पूरी तरह सूख जाने का खतरा पैदा हो जाएगा। ग्वालियर चंबल में हमारी भविष्य में प्रस्तावित सिंचाई और जलापूर्ति योजनाएं खटाई में पड़ जाएंगी।यह नदी गुना से निकलती है। शिवपुरी की सीमा से राजस्थान के बांरा जिले में दाखिल होती है, इसके बाद वापस मप्र के श्योपुर में प्रवेश कर कूनो नेशनल पार्क के बीच से बहती हुई मुरैना जिले में करोली सीमा पर चंबल में मिल जाती है। राजस्थान बांरा के हनोतिया गांव में इस पर 526.46 एमसीएम (50% डिपेंडिबिलिटी) क्षमता का 20 मीटर ऊंचा बैराज बना रहा है। मप्र चाहता है कि बैराज सिर्फ 350.37 एमसीएम (75% डिपेंडिबिलिटी) का बने।
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