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कैंसर के डर ने एक वाइस प्रिंसिपल और चार्टर्ड अकाउंटेंट को जैविक खेती करने के लिए प्रेरित किया। शुरुआत छोटे पैमाने पर की, लेकिन अब 18 एकड़ में अलग-अलग फसलें उगा रहा है। इनमें शिमला मिर्च, तरबूज, खरबूज, टमाटर, लौकी, बैंगन आदि शामिल हैं। इस बार उन्होंने एक एकड़ में शिमला मिर्च लगाई है। वह इसे बुरहानपुर, इंदौर के अलावा महाराष्ट्र के जलगांव में बेचते हैं। हर साल करीब 15 लाख रुपए का मुनाफा कमाते हैं।हम बात कर रहे हैं बुरहानपुर जिले की नेपानगर तहसील के किसान गोपाल राठौड़ की। ग्राम अंबाड़ा के रहने वाले गोपाल कॉमर्स से पोस्ट ग्रेजुएट हैं। चार्टर्ड अकाउंटेंट भी हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह महाराष्ट्र के प्राइवेट एग्रीकल्चर कॉलेज में वाइस प्रिंसिपल बन गए। इसी बीच, उन्होंने खेती करने का मन बनाया।पहले केमिकल फर्टिलाइजर और रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग कर खेती करते थे, लेकिन जीवन में ऐसा मोड़ आया, जब उनके एक रिश्तेदार की तबीयत खराब हुई। उनको मुंबई के अस्पताल में भर्ती कराया गया। पता चला कि उनको कैंसर है। उनकी तीमारदारी के लिए गोपाल टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल में रहे। वहां कुछ ऐसी सामाजिक संस्थाओं के संपर्क में आए, जिन्होंने बताया कि केमिकलयुक्त खेती से कैंसर का खतरा रहता है। उनकी आंखें खुली और उन्होंने जैविक खेती करने का मन बनाया।गोपाल राठौड़ की मानें तो शुरुआती चार-पांच साल में जैविक खेती से कम उत्पादन हुआ। बाजार में उसका उचित मूल्य भी नहीं मिल पाया, तभी वॉट्सएप ग्रुप बनाया। लोगों को इससे जोड़कर जैविक खेती के प्रति जागरूक करने लगे। इसके बाद लोगों ने जैविक के प्रति रुचि दिखाई। अपने ऑर्गेनिक उत्पाद के थोड़े से प्रचार से बाजार में भी अच्छे दाम मिलने लगे।किसान गोपाल राठौड़ ने दो साल पहले करीब 12 लाख रुपए खर्च कर पॉली हाउस बनाया। इसमें जैविक तरीके से सब्जी फसल शिमला मिर्च और टमाटर की खेती की। पॉली हाउस में सब्जियों के लिए बेड बनवाया। सिंचाई के लिए ड्रिप मल्च बिछाकर कुछ दूरी पर शिमला मिर्च के बीज की बुआई की। पिछले साल 60 टन शिमला मिर्च उत्पादित की। इस बार एक एकड़ में शिमला मिर्च लगाई, जबकि अन्य में दूसरी सब्जियां लगाई। मौसम के हिसाब से फ्रूट्स लगाते हैं।
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