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सांची कस्बा देश की दूसरी सोलर सिटी बनने जा रही है
सोलर सिटी

मध्यप्रदेश की राजधानी से सटे रायसेन जिले का सांची कस्बा देश की दूसरी सोलर सिटी बनने जा रही है। सांची में घरों से लेकर गलियां, स्ट्रीट लाइट, चौराहे यहां तक कि यहां का स्तूप भी सोलर लाइट से रोशन होंगे। बौद्ध स्तूपों के लिए दुनिया भर प्रसिद्ध सांची को अब सोलर सिटी के नाम से पहचाना जाएगा। अलग-अलग कंपनियों ने यहां सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू कर दिया है। अगले दो महीनों में सांची को सोलर सिटी बनाने का काम पूरा हो जाएगा। पीएम नरेंद्र मोदी इसका लोकार्पण कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें आमंत्रण भी भेजा गया है।सांची को सोलर सिटी बनाने में जन भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए हर घर को- कुछ न कुछ ऑफ-ग्रिड सौर संयंत्र दिए जाएंगे। जैसे- सोलर कुकर, सोलर स्टडी लैंप, सोलर ड्रायर, सोलर वॉटर हीटर, सोलर लालटेन जैसे उपकरण मुहैया कराए जाएंगे। साथ ही, इन उपकरणों के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इन संयंत्रों को विभिन्न संस्थाओं से प्राप्त CSR और व्यक्तिगत सामाजिक उत्तरदायित्व (ISR) के तहत योगदान द्वारा वित्तीय सहायता दी गई है।अमेरिका समेत कई यूरोपीय देश लगातार 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन टारगेट हासिल करने की बात करते रहे हैं। नेट जीरो का अर्थ है कि सभी देशों को जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए कार्बन न्यूट्रेलिटी यानी कार्बन उत्सर्जन में तटस्थता लानी है। इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि कोई देश कार्बन उत्सर्जन को शून्य पर पहुंचा दे (जो कि असंभव है), बल्कि नेट जीरो का अर्थ है कि किसी भी देश के उत्सर्जन का आंकड़ा वायुमंडल में उसकी ओर से भेजी जा रही ग्रीन हाउस गैसों के जमाव को स्थिर रखे।नेट जीरो एमिशन का मतलब ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन शून्य करना नहीं है, बल्कि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को दूसरे कामों से बैलेंस करना। कुल मिलाकर एक ऐसी अर्थव्यवस्था तैयार करना, जिसमें फॉसिल फ्यूल का इस्तेमाल ना के बराबर हो। कार्बन उत्सर्जन करने वाली दूसरी चीजों का इस्तेमाल भी बहुत कम हो।कुल मिलाकर ये कह सकते हैं कि आप जितना कार्बन पैदा कर रहे हैं उतना ही उसे एब्जॉर्ब करने का इंतजाम आपके पास होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर पेड़-पौधे हवा से कार्बन डाईऑक्साइड एब्जॉर्ब करते हैं।अगर किसी कंपनी के कारखाने से कार्बन की एक निश्चित मात्रा का उत्सर्जन होता है और कंपनी इतने पेड़ लगाती है, जो उतना कार्बन एब्जॉर्ब कर सके तो उसका नेट एमिशन जीरो हो जाएगा। इसके साथ ही कंपनियां पवन एवं सौर ऊर्जा संयंत्र लगाकर भी इसी प्रकार का लाभ पा सकती हैं। यही बात देश के लिए भी लागू होती है।अगर किसी देश में कार्बन उत्सर्जन से ज्यादा कार्बन एब्जॉर्प्शन के सोर्स हैं तो उसका नेट एमिशन निगेटिव हो जाएगा। अभी दुनिया में सिर्फ दो देश भूटान और सूरीनाम ऐसे हैं जिनका नेट एमिशन निगेटिव है। इसकी बड़ी वजह इन देशों में मौजूद हरियाली और कम आबादी है।

Kolar News 21 February 2023

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