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शिशु को जन्म देने के बाद महिला बहुत थकान महसूस करती है। वह डिलीवरी के जिस दर्द और मेंटल प्रेशर से गुजरती है, उसके बाद वह खुद को भी नहीं पहचानती। मां बनने के बाद स्त्री की यही स्थिति परिवार वालों के साथ-साथ उसके लिए भी सबसे बड़ी समस्या होती है।ऊपर से पति और परिवार चाहता है कि मां नवजात शिशु को भी संभाले। लेकिन इस समय वह खुद के शरीर से भी लड़ रही होती है। ऐसे हालात धीरे-धीरे उसके डिप्रेशन की वजह बनते हैं।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन किसी भी उम्र, आय, धर्म, कल्चर और समाज के किसी भी वर्ग की महिला को हो सकता है। 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार भारत में 20,043 महिलाएं इसकी शिकार थीं। कोविड के बाद अभी तक पोस्टपार्टम डिप्रेशन पर कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई है।मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, दिल्ली में गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. अंकिता चंदना के अनुसार प्रेग्नेंसी में महिलाओं में पाए जाने वाले एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन नाम के हॉर्मोन्स की मात्रा ज्यादा होती है। लेकिन जब बच्चे का जन्म होता है तो इनका लेवल अचानक से कम हो जाता है। थायरॉइड ग्लैंड से जो हॉर्मोन रिलीज होते हैं वह भी कम हो जाते हैं।ऐसा उन महिलाओं में ज्यादा होता है जिनकी सिजेरियन डिलीवरी हुई हो, जो लंबे लेबर पेन से गुजरी हो या जिसने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया हो।
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