Video

Advertisement


भारत की प्रकृति नौकरी की नहीं, रोजगार की
mohanlal chipa

 

भारत के ज्ञानी ऋषि-मुनि जीवन के हर पहलू से संबन्धित क्षेत्र के विषय में अनेक ज्ञान सूत्र दे चुके हैं| ज़रूरत इस बात की है कि हम उन सूत्रों को समझे और उन पर काम करें| हमारी अर्थ-व्यवस्था, तंत्र-व्यवस्था, धारण-क्षमता आदि अंग्रेज़ों के शासन के बाद गड़बड़ा गई क्योंकि उन्होंने ज्ञान को डिग्री में बाँध दिया और हर काम को नौकरी की तरह देखा। यह बात अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. मोहनलाल छीपा ने ‘स्वदेशी अर्थ-व्यवस्था, औद्योगीकरण तथा धारणक्षम विकास’ पर केन्द्रित सत्र की अध्यक्षता करते हुए कही। लोक-मंथन के दूसरे दिन केवल ज्ञान कक्ष में इस विषय पर पहला समानान्तर सत्र हुआ। मुख्य वक्ता के रूप में आईआईटी मुंबई के प्रो. वरद बापट, तमिलनाडु से मैनेजमेंट के प्रो. पी कनगसभापति और बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस से प्रो. एन.एन. शर्मा उपस्थित थे|

 

सत्र की शुरुआत में प्रो. बापट ने अर्थ-व्यवस्था की दो मुख्य धाराओं – पूँजीवाद और समाजवाद के बारे में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि शोषण मुक्त समाज बनाते-बनाते दरअसल मानवीय मूल्य और धर्म मुक्त समाज बनाया जाने लगा, जो आखिरकार घातक सिद्ध हुआ| उन्होंने अपनी प्रस्तुति में साझा किया कि भारतीय संस्कृति में पारिवारिक स्तर पर जिस तरह से अर्थ-व्यवस्था संतुलित की जाती रही है, उस पर पूँजीवादी और समझवादी अर्थ-व्यवस्था का गहरा प्रभाव पड़ा है| भारत में बचत की दर आज भी 30 प्रतिशत है, जो किसी भी अन्य देश से अधिक है। उन्होंने कहा कि भारत के सांस्कृतिक मूल्यों में अर्थ-व्यवस्था हमेशा मजबूत रही और रहेगी क्योंकि ये हमारी जीवन शैली से जुड़ी हुई है| उदाहरण के तौर पर भारत में लोग सोना खरीदने को निवेश मानते हैं और वो संपत्ति के रूप में कई पीढ़ियों के पास रहता है। दूसरी और पाश्चात्य देशों में सोना खरीदना पेट्रोल इस्तेमाल की तरह उपभोग की दृष्टि से देखा जाता है|

प्रो. पी. कनगसभापति ने कहा कि हिंदुस्तान की अर्थ-व्यवस्था को मजबूत बनाए रखने का एक बड़ा श्रेय महिलाओं को जाता है| इस देश में हर घर में सोने पर निवेश से लेकर बचत करने तक की परंपरा महिलाओं में विरासत के रूप में रही है| प्रो. कनगसभापति ने अर्थ-व्यवस्था के साथ-साथ औद्योगीकरण और धारणक्षम विकास के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए और इन सभी में गाँवों में कार्य कर रहे छोटे-छोटे समुदायों का भी ज़िक्र किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में हिंदुस्तान के कई लघु औद्योगिक समूहों के उदाहरण प्रस्तुत किए|

अंतिम वक्ता प्रो. एन.एन. शर्मा ने धारणक्षम विकास और औद्योगीकरण को पूर्ण रूप से स्वदेशी बताया। उन्होंने कहा कि पूँजीवादी या समाजवादी तंत्र पूरे विश्व की अर्थ-व्यवस्था का मॉडल नहीं हो सकता। हर देश की अपनी संस्कृति होती है जो उस देश की हर व्यवस्था के साथ तालमेल बनाती है| भारत की संस्कृति अपने आप में इतनी मजबूत है जिसके आधार पर सभी तंत्र बेहतर काम कर सकते हैं। यदि इस संस्कृति के साथ अन्य तंत्र को लागू किया जाएगा तो वह काम नहीं करेगा। सभी समस्याओं के समाधान के लिए उन्होंने एक उपाय बताते हुए कहा कि भारत में अर्थ-व्यवस्था का सबसे बेहतर मॉडल होगा जब धर्म की दृष्टि से अर्थ का उपयोग किया जाएगा, यानी अर्थ का न अभाव हो और न ही प्रभाव हो|

 

Kolar News 13 November 2016

Comments

Be First To Comment....

Page Views

  • Last day : 8796
  • Last 7 days : 47106
  • Last 30 days : 63782
x
This website is using cookies. More info. Accept
All Rights Reserved ©2025 Kolar News.