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मध्यप्रदेश में अब तक 9 लाख 37 हजार अधिकार अभिलेख वितरित
मध्यप्रदेश में अब तक 9 लाख 37 हजार अधिकार अभिलेख वितरित

भारत में स्वामित्व योजना से पहली बार ग्राम वासियों को उनकी संपत्ति पर संपूर्ण हक का अभिलेख मिल रहा है। इसके माध्यम से वे बैंकों से ऋण प्राप्त कर सकते हैं तथा संपत्ति का क्रय-विक्रय कर सकते हैं। भारत में 24 अप्रैल 2020 को यह योजना लागू कई की गई जिस पर सभी राज्यों में तेजी से अमल किया जा रहा है। योजना के क्रियान्वयन में मध्य प्रदेश अग्रणी राज्य है जहाँ 56 हजार गाँव में से 40 हजार 500 गाँव में ड्रोन सर्वेक्षण का कार्य पूर्ण हो गया है और 9 लाख 37 हजार अधिकार अभिलेख वितरित किए जा चुके हैं। स्वामित्व योजना एवं ग्रामीण नियोजन पर आज कुशाभाऊ ठाकरे कन्वेंशन सेंटर में प्रारंभ हुए दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन (नेशनल कॉन्फ्रेंस) में यह जानकारी दी गई। कार्यशाला का विधिवत शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन के साथ भारत सरकार पंचायती राज मंत्रालय के सचिव सुनील कुमार ने किया। कार्यशाला में भारत के 20 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 150 पंचायत प्रतिनिधि, पंचायत एवं ग्रामीण विकास के अधिकारी, राजस्व विभाग अधिकारी उपस्थित थे। कार्यशाला में स्वामित्व योजना और ग्रामीण नियोजन पर विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का विमोचन भी किया गया। रिपोर्ट का विस्तृत प्रस्तुतिकरण पंचायती राज मंत्रालय भारत सरकार के संयुक्त सचिव श्री एपी नागर ने किया।

 

सचिव पंचायती राज मंत्रालय भारत सरकार सुनील कुमार ने कहा कि स्वामित्व योजना क्रांतिकारी योजना है। इससे व्यापक आर्थिक और सामाजिक बदलाव आएगा। यह योजना ग्रामीणों की संपत्ति को पूँजी में बदलेगी। ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को मजबूत करने में यह योजना दूरगामी साबित होगी। उन्होंने योजना में मध्य प्रदेश में हो रहे कार्यों की सराहना की। सचिव राजस्व विभाग संजय गोयल ने योजना के मध्यप्रदेश में क्रियान्वयन के विषय में बताया कि प्रदेश में योजना का कार्य पूर्णता की ओर है। अगले वर्ष दिसंबर माह तक यह कार्य पूरा हो जाएगा। प्रदेश में आधुनिक ड्रोन तकनीकी से ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वे कर अधिकार अभिलेख तैयार किए जा रहे हैं। यह अभिलेख लैंड रिकॉर्ड्स पोर्टल पर उपलब्ध है। सर्वे पश्चात 11 हजार 600 ग्रामों में अधिकार अभिलेख का प्रकाशन हो चुका है। ग्रामीणों को पहली बार उनकी संपत्ति का वैध दस्तावेज कानूनी अधिकार के साथ दिया जा रहा है।

 

जशदा संस्था पुणे के डीडीजी एस. चोकलिंगम ने बताया कि ग्रामीण भूमि का सर्वे आवश्यक है, चाहे वह आबादी की हो या खेत की। संबंधित क्षेत्र के कलेक्टर/डीएम को, यदि किसी ग्रामीण क्षेत्र में लोग पर्याप्त समय से रह रहे हैं, तो उस भूमि को आबादी भूमि घोषित करना चाहिए। निजी क्षेत्र के लिए यह सीमा 12 वर्ष और शासकीय भूमि के लिए 30 वर्ष है। यदि फार्म हाउस है तो उसे आबादी भूमि घोषित न किया जाए। कमिश्नर सर्वे, सेटलमेंट एंड लैंड रिकॉर्ड्स कर्नाटक  मनीष मोद्गिल ने बताया कि लोगों को उनकी संपत्ति का स्वामित्व देने का यह कानूनी तरीका है। जिन ग्रामीण क्षेत्रों का पहली बार सर्वे हो रहा है वहाँ, सार्वजनिक स्थल और रोड आदि छोड़ कर, जिस जगह पर व्यक्ति रह रहा है ,उसे उस जगह का हक दिया जा सकता है। डायरेक्टर लैंड रिकॉर्ड्स असम शांतनु गोटमारे ने बताया कि अलग-अलग क्षेत्रों में भूमि स्वामित्व की अवधारणा अलग-अलग है। अरुणाचल प्रदेश में भूमि पर समुदाय का अधिकार है। पारंपरिक रिवाजों और कानून अनुसार भूमि का अधिकार देना चाहिए। भूमि पर स्वामित्व देने के बाद उसे कर से न जोड़ा जाए।

 

Kolar News 4 November 2022

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