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जीआईएस तकनीक से नगर निगम रखेगा प्रॉपर्टी की जानकारी
कोलार ,बावडिया ,होशंगाबाद रोड ,चूना भट्टी ,रायसेन रोड ,बैरागढ़ ,नेहरू नगर ,ईदगाह इलाके में लोगों ने मकान बड़े बड़े बना लिए हैं लेकिन उस हिसाब से प्रोपर्टी टैक्स नहीं देते हैं। शहरवासी अब संपत्ति कर बचाने के लिए बड़े मकान को छोटा बताने या व्यावसायिक उपयोग को आवासीय बताने जैसी गड़बड़ियां नहीं कर सकेंगे। जीआईएस तकनीक की मदद से नगर निगम शहर की हर प्रॉपर्टी की जानकारी रखेगा। इसके लिए पहले वार्ड के सैटेलाइट मैप पर हर प्रॉपर्टी को चिह्नित किया जाएगा। इसके बाद मैदानी सर्वे करके डिटेल जुटाई जाएगी। इस डिटेल को सैटेलाइट मैप के साथ जोड़ दिया जाएगा। सर्वे डिटेल के साथ प्राॅपर्टी का फोटो भी होगा। इसका सीधा फायदा यह होगा कि निगम के पास हर प्राॅपर्टी और उससे मिलने वाले संपत्ति कर की जानकारी होगी। इससे वसूली की मॉनीटरिंग बेहतर तरीके से हो सकेगी। जीआईएस सर्वे का काम नागपुर की एजेंसी एडीसीसी को सौंपा गया है।
सर्वे की शुरुआत जाटखेड़ी से - प्रॉपर्टी सर्वे की शुरुआत वार्ड 53 जाटखेड़ी से होगी। एडीसीसी के एक्सपर्ट नगर निगम के अमले के साथ डोर-टू-डोर सर्वे करेंगे। इसमें एक महीने का समय लगेगा। प्रोजेक्ट की शुरूआत के लिए जाटखेड़ी का चयन इसलिए किया गया, क्योंकि इस वार्ड में नई मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के साथ डुप्लेक्स भी हैं और कुछ हिस्सा झुग्गीबस्ती का भी है। आशिमा मॉल यानी प्रमुख व्यावसायिक क्षेत्र भी इसी वार्ड में है। यानी इस वार्ड में लगभग हर कैटेगरी की प्रापर्टी है। जाटखेड़ी में सर्वे में आने वाली दिक्कतों के आधार पर पूरे शहर के लिए रणनीति बनाई जा सकेगी।
इन जानकारियों को संपत्ति के फोटो के साथ वार्ड के सैटेलाइट मैप से जोड़ दिया जाएगा। हर प्राॅपर्टी को एक नंबर दिया जाएगा। बकायादार और बड़े संपत्तिकर दाता के लिए अलग-अलग कलर से मार्किंग होगी। इससे संपत्ति कर की गणना की जानकारी एक क्लिक पर मिल जाएगी।
पिछले साल निगम ने सर्वे कराया था। इसमें संपत्ति कर वसूली में 50 करोड़ की गड़बड़ी सामने आई थी। शहर में 30 हजार से ज्यादा मकान संपत्ति कर के रिकाॅर्ड में ही दर्ज नहीं थे और 15 हजार लोग कम टैक्स दे रहे थे। यदि कोई स्वतंत्र एजेंसी सर्वे करे तो यह आंकड़ा और बड़ा हो सकता है।
नगर निगम 2009 में भी संपत्तियों की जीआईएस मैपिंग के लिए कोशिश कर चुका है। उस समय इस काम पर 1.80 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, लेकिन नतीजा सिफर रहा। निगम अधिकारियों के अनुसार सर्वे और मैपिंग का काम अलग-अलग एजेंसी को देने का नतीजा यह हुआ कि दोनों के डाटा मैच नहीं हुए। निगम इस बार दोनों काम एक ही एजेंसी को देने जा रहा है। पिछली बार वार्डों की संख्या 70 थी। अब 85 हो गई है। कई वार्डों की सीमाएं बदल गईं और 20 नए गांव निगम सीमा में शामिल हो गए।
कानपुर और बंगलुरू नगर निगम ने 2012 में प्राॅपर्टी टैक्स के लिए जीआईएस तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया। इसके बाद पूर्वी दिल्ली, मुंबई, पटना, विशाखापट्टनम, कोलकाता और अहमदाबाद ने इसे अपनाया। प्राॅपर्टी का कुल एरिया और भाग हर भाग के मालिक का नाम संपत्ति कर की गणना, बकाया राशि फोटो डिटेल को सैटेलाइट मैप के साथ जोड़ देंगे
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