Advertisement
न्यायाधीशों की गरिमा और न्यायपालिका के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचाई जानी चाहिए
देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि सभी संस्थानों द्वारा संवैधानिक प्रावधानों का पालन करना, शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का अभिन्न अंग है। जबलपुर में न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा स्मृति व्याख्यान में धनकड़ ने कहा कि निर्विवाद रूप से लोकतंत्र समृद्ध तब होता है जब सभी संवैधानिक संस्थानों के बीच अच्छा समन्वय हों। उन्होंने कहा कि इस पहलू पर ध्यान देने से जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा।सार्वजनिक क्षेत्र में न्यायाधीशों की आलोचनाओं करने का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने इस पर अनुकरणीय तरीके से रोक लगाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह निंदनीय है और अगर विधि के शासन का प्रभुत्व बनाये रखना है तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। विभिन्न संस्थाओं में पारदर्शिता का जिक्र करते हुए धनखड़ ने कहा कि मजबूत, निष्पक्ष और स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली, लोकतांत्रिक मूल्यों के फलने-फूलने का सबसे सही माहौल प्रदान करती है।
उपराष्ट्रपति ने आग्रह किया कि न्यायाधीशों की गरिमा और न्यायपालिका के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचाई जानी चाहिए क्योंकि ये विधि के शासन और संविधानवाद के मूल सिद्धांत हैं।धनखड़ ने कहा कि सभी देशवासियों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। उन्होंने कहा कि व्यापक जनहित में उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों को इसका संज्ञान लेना चाहिए और लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत करना चाहिए।इस बीच, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मातृभाषा को न्याय की भाषा बनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में कन्नड़, तमिलनाडु में तमिल और मध्य प्रदेश में हिंदी राजभाषा होनी चाहिए। श्री चौहान ने कहा कि अगर मातृभाषा ही न्याय की भाषा होगी तो आम आदमी को बहुत राहत मिलेगी। न्यायमूर्ति किशन कौल और न्यायमूर्ति जे. के. महेश्वरी ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।
Kolar News
18 September 2022
All Rights Reserved ©2024 Kolar News.
Created By: Medha Innovation & Development
|