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केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक ईज ऑफ डूइंग के तहत आमजन के साथ कारोबारियों और अन्य को राहत देने योजनाएं तैयार कर रहे हैं। लेकिन नगर निगम इससे उलट ही काम कर रहा है। ऑटोमोबाइल एजेंसियों से पार्किंग शुल्क वसूली का मामला हो या फिर भवन स्वामी से दुकानदारों के लायसेंस शुल्क की वसूली हो। भवन निर्माता से दौड़ लगवाने का मामला हो। बीते दो से तीन माह में इस तरह के निर्णय हुए, जिससे नगर निगम को तो राहत मिली और टैक्स भी मिला, लेकिन इससे दूसरे पक्षों और आम जनता की दिक्कतें बढ़ी हैं। ऐसे समझें दिक्कत बढ़ाने वाले निर्णय : ऑटोमोबाइल एजेंसियों से पार्किंग शुल्क- नगर निगम जब स्मार्टपार्किंग योजना में फेल हुआ और बिना एक रुपया दिए कंपनियां लाखों रुपए कमाकर रवाना हो गई तो फिर निगम ने ऑटोमोबाइल एजेंसियों के माध्यम से वन टाइम पार्किंग शुल्क की वसूली शुरू की। पहली नजर में तो शहर में फ्री पार्किंग व्यवस्था ठीक लगती है, लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि न्यू मार्केट से लेकर दस नंबर और अन्य क्षेत्रों में पार्किंग बदहाल हो गई। पार्किंग में कब्जे हो गए। दूसरी ओर ऑटोमोबाइल एजेंसियों के लिए पार्किंग शुल्क की वसूली का अतिरिक्त काम दिक्कतभरा हो गया। आखिरकार वे कोर्ट से स्टे ले आए।
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