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जंगली जानवरों में ऐसी दोस्ती और कहीं शायद ही देखने को मिल सकती है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के पास के रातापानी अभ्यारण्य में बाघों की बिल्कुल पक्की दोस्ती है। यहां घना जंगल है और इसके अनुपात में बहुत बाघ भी हैं. उनकी नैसर्गिक टेरेटरी के हिसाब से जगह कम है पर वे इसके लिए झगड़ते नहीं हैं। यहां बाघ-बाघिन की संख्या भी लगभग बराबर है इसलिए भी बाघों में लड़ाई नहीं होती। बाघों की आपसी दोस्ती और प्रेम के कारण अभ्यारण्य में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। हाल ये है कि एक ओर जहां दुनियाभर में बाघ कम होते जा रहे हैं। वहीं इस अभ्यारण्य में महज 4 साल में इनकी संख्या दोगुनी हो गई है। इस अभ्यारण्य को जल्द ही टाइगर रिजर्व का दर्जा भी मिलने वाला है। रातापानी अभयारण्य औबेदुल्लागंज वन मंडल में आता है। यह बाघों का सबसे खूबसूरत ठिकाना माना जाता है। इसके अलावा यह बाघों के लिए सबसे सुरक्षित जंगल भी है। सबसे खास बात यह है कि यहां बाघों की दोस्ती है। बाघों में अपनी टेरेटरी को लेकर खूब संघर्ष होते हैं। लेकिन यहां अभी तक महज 2 बार ही ऐसे संघर्ष सामने आए हैं। आदर्श स्थिति में बाघ की टेरेटरी करीब 60 वर्ग किमी की मानी जाती है जबकि यहां इससे बहुत कम सिर्फ 20 से 22 वर्ग किमी भ्रमण की जगह ही मिल पा रही है। इसके बाद भी बाघ मिलजुलकर रहते हैं। दरअसल यहां बाघों के भोजन के लिए कई वन्य प्राणी हैं। पानी के लिए भी पर्याप्त स्रोत हैं। भ्रमण के लिए एरिया कम होने के बाद भी भूख मिटाने के लिए बाघों को शिकार आसानी से मिल जाते हैं। इसलिए बाघ आपस में नहीं लड़ते। राजधानी भोपाल के पास होने और नेशनल हाईवे से सटा होने के कारण रातापानी अभ्यारण्य टूरिस्टों की पसंद खास पसंद बन गया है। 2018 में करीब 35 बाघ थे जबकि अब करीब 70 बाघ हो चुके हैं। इस प्रकार बाघों में दोगुनी वृद्धि हो गई है।
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