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भेल के कर्मचारियों और उनके परिवारों को इलाज देने वाला कस्तूरबा अस्पताल खुद बीमार है। यहां मरीजों की संख्या के आधार पर करीब 100 डॉक्टर होना चाहिए लेकिन काम सिर्फ 40 ही कर रहे हैं। यह हालात तब है जब अस्पताल की सेहत सुधारने के लिए रोडमैप तैयार किया जा रहा है। यहां दस साल पहले 150 से ज्यादा डॉक्टर थे जो घटकर 40 हो गए हैं। वहीं इसके अलावा भी प्रदेश के जिला अस्पतालों सहित अनेक सरकारी अस्पताल भी इन दिनों खुद बीमार बने हुए हैं, लेकिन अब तक सरकार की ओर से उन्हें सुधारने के लिए क्या कुछ प्लान किया गया है, इस संबंध में कोई जानकारी सामने नहीं आई है। ऐसे में अभी ये अस्पताल तक अपना नंबर आने का इंतजार कर रहे हैं। कोविड के बाद अन्य अस्पताल जहां ऑक्सीजन व्यवस्था को दुरुस्त कर रहे हैं, वहीं कस्तूरबा में आधे बेड पर ऑक्सीजन सप्लाई ही नहीं है। यहां 300 में से सिर्फ 150 बिस्तरों पर ही ऑक्सीजन की व्यवस्था है। इसमें से भी 20 आईसीयू के बिस्तर हैं। अगर कोरोना जैसे हालात एक बार फिर बनते हैं तो यहां मरीजों को भर्ती करना मुश्किल हो जाएगा। वहीं दूसरी ओर प्रदेश के कई जिलों में अव्यवस्था और अन्य समस्याओं से जुझ रहे सरकारी अस्पतालों को सुधारने का कोई सरकारी रोडमैप तैयार किया भी जा रहा है कि नहीं इस संबंध में किसी प्रकार की सूचना मौजूद नहीं है। सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्थाओं की बानगी पिछले दिनों ही राजगढ़ ब्यावरा के सरकारी अस्पताल व गुना के जिला अस्पताल में देखने को मिली थी, ये स्थितियां कब मरीजों पर मौत बनकर टूटेंगी इसका कोई भरोसा नहीं, लेकिन इसके बावजूद सरकार अब तक उस पर मौन साधे दिख रही है। जानकारी के मुताबिक करीब दस साल पहले अस्पताल में ओपीडी में सिर्फ 500 मरीज ही पहुंचते थे। उनके इलाज के लिए अस्पताल में 150 चिकित्सक थे। अब ओपीडी में मरीजों की संख्या बढ़कर 800 से ज्यादा हो गई लेकिन डॉक्टर कम हो गए।
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