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स्कूली बस्ते के बोझ से नौनिहालों का बचपन दबता जा रहा है। मासूम कंधों पर 30 किलो वजन से बच्चे और अभिभावक दोनों परेशान हैं। इसका खुलासा हुआ है बाल आयोग के प्रदेश के अलग-अलग स्कूलों में किए गए निरीक्षण से। इस दौरान बच्चों के बस्तों का वजन 20-30 किलो तक पाया गया, जबकि सरकार ने कक्षा और वजन के हिसाब से बैग को लेकर नियम तय कर दिए हैं। लेकिन स्कूलों में इसका पालन नहीं हो पा रहा है। बाल आयोग के सदस्य बृजेश सिंह चौहान का कहना है कि प्रदेशभर के जिला शिक्षा अधिकारियों को पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि केंद्रीय शिक्षा विभाग द्वारा स्कूल बैग के वजन को लेकर जारी दिसंबर-2020 की पॉलिसी का जिले के सभी स्कूलों में पालन करवाएं। ज्यादा भारी बैग उठाने से बच्चे पीठ और गर्दन दर्द से पीड़ित हो रहे हैं। 5 से 15 साल तक के कई बच्चों में ऐसी शिकायत पाई गई है। चिंतित अभिभावकों का कहना है कि एक तो बच्चा पहले से ही कमजोर है, ऊपर से भारी बैग और मुश्किल खड़ी कर रहा है। मेरा बच्चा पहली कक्षा में पढ़ता है। अभी उसे हर रोज 6-7 किताबें और इतनी ही कॉपियां रोज स्कूल ले जानी होती है। टिफिन और लंच बॉक्स को मिलाकर बैग का वजन 5 किलो से भी ज्यादा हो जाता है। इसलिए बच्चा स्कूल से आने के बाद बिल्कुल थक जाता है
कम उम्र में बच्चों पर बस्ते का बोझ लादने के गलत प्रभाव देखने को मिलते हैं। भारी बैग उठाने वाले बच्चे भविष्य में पोस्टुरल स्कोलियोसिस से ग्रस्त हो जाते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें रीढ़ की हड्डी एक तरफ घूम जाती है।
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