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मध्यप्रदेश में 77 हजार डॉक्टर की जरूरत है, लेकिन हकीकत यह है कि यहां सिर्फ 22 हजार डॉक्टर ही काम कर रहे हैं। प्रदेश में 3400 लोगों पर एक डॉक्टर ही मौजूद है। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि प्रदेश में जिस रफ्तार से डॉक्टर तैयार हो रहे हैं, उससे अधिक रफ्तार से बेहतर की तलाश में बाहर जा रहे हैं। ऐसे में डब्लूएचओ के स्टैंडर्ड को पाने में राज्य को पांच से दस साल से अधिक का इंतजार करना पड़ेगा मध्य प्रदेश में 11 निजी और 13 सरकारी मेडिकल कॉलेज सहित 24 मेडिकल कॉलेज हैं। मालूम हो कि डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार प्रति एक हजार व्यक्ति पर कम से कम एक चिकित्सक जरूरत होना चाहिए। एमपी मेडिकल काउंसिल ने प्रदेश में डॉक्टरों की सही संख्या जानने के लिए डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन के निर्देश जारी किए थे। अंतिम तिथि में कई बार बदलाव करने के बावजूद महज 22000 डॉक्टरों ने ही री रजिस्ट्रेशन कराया। मालूम हो कि काउंसिल के दस्तावेज में प्रदेश में डॉक्टरों की संख्या 59 हजार दर्ज है। अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी को आंके तो स्थिति हद से ज्यादा चिंताजनक है। स्वास्थ्य विभाग विशेषज्ञों के 3278 पदों में से सिर्फ 1029 पर कार्यरत हैं. इनमें से भी इस साल 91 विशेषज्ञ रिटायर हो जाएंगे। वहीं चिकित्सा अधिकारियों के 1677 पद खाली हैं। दूसरी ओर चिकित्सा शिक्षा विभाग में 2890 पदों में से 863 पद खाली हैं। मेडिकल कॉलेजों में डीन के 13 और अधीक्षक के 14 पद खाली हैं। मध्य प्रदेश में 19 सरकारी मेडिकल कॉलेजों के साथ 51 जिला अस्पताल, 66 सिविल अस्पताल, 335 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 1170 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 9192 स्वास्थ्य उप केंद्र और 49864 ग्राम आरोग्य केंद्र हैं। डॉक्टरों का प्रदेश छोडना ही सबसे बड़ी समस्या है। प्रदेश में हर साल तीन हजार के आसपास डॉक्टर हैं, लेकिन इनमें से हर साल 800 से ज्यादा प्रदेश छोड़ देते हैं। एमपी में सिर्फ 13 सरकारी और 11 निजी मेडिकल कॉलेज ही हैं। बीते दस सालों में सिर्फ आठ नए मेडिकल कॉलेज ही शुरू हो सके. वहीं महाराष्ट्र और तमिलनाडु सहित अन्य राज्यों में 50 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज हैं। एमबीबीएस के अलावा पीजी की सीटें भी अन्य राज्यों की तुलना में खांसी कम हैं। प्रदेश में कुल 756 सीटें पीजी सीटें हैं, जिनमें 384 एमडी, एमएस की 233, एमसीएच की आठ, डीएम की नौ और डिप्लोमा की 122 सीटें है। वहीं दूसरे राज्यों में ३५०० से ज्यादा पीजी सीटें हैं।
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