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महाराष्ट्र की लड़ाई भी अब विधानसभा होते हुये सुप्रीम कोर्ट जाते हुये दिखाई दे रही है। एमपी की सरकार गिरने के दौर में सबसे मुख्य भूमिका में केन्द्रिय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। महाराष्ट्र की राजनीति में चल रहा घटनाक्रम सवा दो साल पहले मध्यप्रदेश के मचे राजनीतिक घमासान की तर्ज पर चल रहा है। एमपी में कमलनाथ ने 12 दिन बाद हार मानकर इस्तीफा दे दिया था। अब पूरे देश की निगाहें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर टिकी हुयी हैं। महाराष्ट्र में आये राजनीतिक संकट का पांचवां दिन है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि, कुर्सी का यह संघर्ष अभी कुछ दिन और दिखाई दे सकता है। एमपी में हालांकि कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई थी। हाराष्ट्र में चल रहे राजनीतिक घमासान में आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के द्वारा कमलनाथ को कांग्रेस का पर्यवेक्षक बनाये जाने से एमपी की भी इंट्री इस मामले में हो गयी है. एमपी में 9 मार्च 2020 को कांग्रेस सरकार के 6 मंत्री और 13 विधायक बेंगलुरु चले गये थे। इसके बाद मामला विधानसभा से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट गया था। सुप्रीम कोर्ट ने तब कमलनाथ सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने का निर्णय किया था। कमलनाथ ने इसके बाद 20 मार्च 2020 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। महाराष्ट्र की लड़ाई भी अब विधानसभा होते हुये सुप्रीम कोर्ट जाते हुये दिखाई दे रही है। एमपी की सरकार गिरने के दौर में सबसे मुख्य भूमिका में केन्द्रिय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। सिंधिया मुख्य भूमिका में होने के बाद भी कांग्रेस से बागी हुए विधायकों के साथ बैंगलोर नहीं गये थे। सिंधिया की तर्ज पर ही इस बार एकनाथ शिंदे बागी विधायकों का नेतृत्व कर रहे हैं। एमपी में जिस प्रकार कांग्रेस के विधायकों ने भाजपा की सदस्यता ली थी। विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था। ऐसा घटनाक्रम फिलहाल महाराष्ट्र में दिखाई नहीं दे रहा है। महाराष्ट्र में शिंदे के साथ विधायकों की संख्या केा बड़ी संख्या है। ऐसे में उन्हें इस्तीफा देकर फिर से चुनाव मैदान में उतरना होगा इसकी संभावना कम है। यही कारण है कि बेंगलुरु पहुंचने के बाद कांग्रेस के बागी विधायकों ने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, वहीं महाराष्ट्र के बागी विधायकों ने ऐसा नहीं किया है। ऐसे में अब महाराष्ट्र में कब तक यह राजनीतिक संघर्ष चलेगा, इस पर सभी की निगाहें हैं।
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